गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

ब्रिटिशों ने भारत पर ऐसे अत्याचार किये थे जिनके सामने आज का ISIS और बोको हरम कुछ नहीं है !

ब्रिटिशों ने भारत पर ऐसे अत्याचार किये थे जिनके सामने आज का ISIS और बोको हरम कुछ नहीं है भारत में लोग फिल्मों में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड तथा भगत-सुखदेव-राजगुरु की फांसी मात्र देखकर आज भी भडक उठते हैं । लेकिन उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा उनके ही देश में ऐसे ऐसे कत्लेआम व नरसंहार अंजाम दिए गये हैं । जिनके सामने आज के ISIS, बोको हरम व तालिबान अलकायदा कुछ भी नहीं हैं । ऐसे ही एक क्रूरतम नरसंहार के बारे में हम बता रहे हैं आपको जिससे आप आजतक शायद अनजान हैं, जिसे ब्रिटिश सरकार व उसके तत्कालीन तानाशाह मुखिया विंस्टन चर्चिल ने अंजाम दिया था।
यह नरसंहार था इतिहास के क्रूरतम कत्लेआमों में से एक ‘बंगाल का अकाल’ जिसे इतिहास ने मात्र एक अकाल समझकर भुला दिया जो कि सीधा सीधा कत्लेआम था जिसे विंस्टन चर्चिल व ब्रिटिश सरकार ने अंजाम दिया था। हिटलर ने लाखों यहूदियों को मार दिया था उसके लिए यहूदी आजतक रोते रहते हैं व अपने तगड़े सूचना तंत्र तथा मार्केटिंग के बल पर दुनिया की सहानुभूति बटोरते रहते हैं । लेकिन भारतीयों पर हुए अत्याचारों की कहीं कोई चर्चा नही होती । चाहे वो वर्षों इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा किये गये कत्लेआम व अत्याचार हो या पुर्तगालियों, अंग्रेजों द्वारा अंजाम दिए गये भयानक कत्लेआम हों या फिर विभाजन के बाद हुए दंगे-फसाद, जिसमें सीधी सीधी भूमिका ब्रिटिश सरकार की ही थी ।
 : जानिए ब्रिटिशों द्वारा बंगाल में किये गये भारत के सबसे बड़े ‘नरसंहार’ के बारे में  आज वर्तमान में बहुत कम ही भारतीय होंगे ऐसे जो ‘बंगाल में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रायोजित भयानक अकाल‘ के बारे में जानते होंगे । यह कोई अकाल नहीं बल्कि एक ऐसा नरसंहार था जिसमें 60 लाख से ज्यादा भारतीय मारे गये थे । यानी की विभाजन के समय हुए दंगो से कई गुना ज्यादा लेकिन इस घटना का जिक्र कहीं नही होता । क्योंकि इतिहासकारों को भारतीयों पर हुए अत्याचारों में ज्यादा रूचि नहीं रहती और ना ही भारतीयों को अपने भूत भविष्य से कोई ज्यादा लेना देना होता है।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

क्या है भगवान श्री कृष्ण की 16 कलाएं ?

श्रीकृष्ण और १६ कलाएं : क्या होती हैं सोलह कलाएं ??

श्रीकृष्ण को संपूर्ण अवतार माना जाता है । वह सोलह कलाओं के स्वामी थे। सामान्य मनुष्य में पांच कलाएं अभिव्यक्त होती हैं। यही मनुष्य योनि की पहचान भी है। पांच कलाओं से कम होने पर पशु, वनस्पति आदि की योनि बनती है और पांच से आठ कलाओं तक श्रेष्ठ मनुष्य की श्रेणी बनती है। अवतार नौ से लेकर सोलह कलाओं तक से युक्त होते हैं। श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं के स्वामी माने गए हैं ….

भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता था कि वह संपूर्णावतार थे और मनुष्य में निहित सभी सोलह कलाओं के स्वामी थे। यहां पर कला शब्द का प्रयोग किसी ‘आर्ट’ के संबंध में नहीं किया गया है बल्कि मनुष्य में निहित संभावनाओं की अभिव्यक्ति के स्तर के बारे में किया गया है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार ईश्वर का पूर्णावतार, ईश्वर के सोलह अंशों (कला) से पूर्ण होता है। सामान्य मनुष्य में पांच अशों (कलाओं) का समावेश होता है। यही मनुष्य योनि की पहचान भी है। पांच कलाओं से कम होने पर पशु, वनस्पति आदि की योनि बनती है और पांच से आठ कलाओं तक श्रेष्ठ मनुष्य की श्रेणी बनती है। अवतार नौ से सोलह कलाओं से युक्त होते हैं। पंद्रह कलाओं से युक्त व्यक्ति को अंशावतार ही माना जाता है। श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त थे। एक मान्यता यह भी है कि राम सूर्यवंशी हैं तो सूर्य की बारह कलाओं के कारण, उनके भीतर बारह कलाएं थी। कृष्ण चंद्रवंशी हैं तो चंद्रमा की सोलह कलाओं से युक्त होने के कारण पूर्णावतार हैं। ‘कला’ की तरह ही अनेक ऐसे शब्द हैं जिनके अर्थ कालांतर में बदल गए। जिनमें से एक शब्द ‘संग्राम’ भी है। प्राचीन काल में विभिन्न ग्रामों के सम्मेलन को संग्राम कहते थे। इन सम्मेलनों में अक्सर झगड़े होते थे और ये युद्ध जैसा रूप धारण कर लेते थे। धीरे-धीरे संग्राम शब्द युद्ध के लिए प्रयुक्त होने लगा। ‘शास्त्र’ शब्द का स्थान भी कला ने बहुत सहजता के साथ ले लिया। पाक शास्त्र , सौंदर्य शास्त्र, शिल्प शास्त्र आदि सब क्रमशः पाक कला, सौंदर्य कला, शिल्प कला आदि हो गए।


श्रीकृष्ण की १६ कलाएं
कला को सरल शब्दों में एक तरह का गुण या विशेषता भी कहा जा सकता है। श्रीकृष्ण जी में ही ये सारी खूबियां समाविष्ट थीं। इन सोलह कलाओं और उन्हें धारण करने वाले का विवरण इस तरह का है –


1. श्री संपदा : श्री कला से संपन्न व्यक्ति के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। ऐसा व्यक्ति आत्मिक रूप से धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास से कोई खाली हाथ वापस नहीं आता। इस कला से संपन्न व्यक्ति ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करता है।
2. भू संपदा : जिसके भीतर पृथ्वी पर राज करने की क्षमता हो तथा जो पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो, वह भू कला से संपन्न माना जाता है।
3. कीर्ति संपदा : कीर्ति कला से संपन्न व्यक्ति का नाम पूरी दुनिया में आदर सम्मान के साथ लिया जाता है। ऐसे लोगों की विश्वसनीयता होती है और वह लोककल्याण के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
4. वाणी सम्मोहन : वाणी में सम्मोहन भी एक कला है। इससे संपन्न व्यक्ति की वाणी सुनते ही सामने वाले का क्रोध शांत हो जाता है। मन में प्रेम और भक्ति की भावना भर उठती है।
5. लीला : पांचवीं कला का नाम है लीला। इससे संपन्न व्यक्ति के दर्शन मात्र से आनंद मिलता है और वह जीवन को ईश्वर के प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।
6. कांतिः जिसके रूप को देखकर मन अपने आप आकर्षित हो जाता हो, जिसके मुखमंडल को बार-बार निहारने का मन करता हो, वह कांति कला से संपन्न होता है।
7. विद्याः सातवीं कला का नाम विद्या है। इससे संपन्न व्यक्ति वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ, संगीत कला, राजनीति एवं कूटनीति में भी सिद्घहस्त होते हैं।
8. विमलाः जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं हो और जो सभी के प्रति समान व्यवहार रखता हो, वह विमला कला से संपन्न माना जाता है।
9. उत्कर्षिणि शक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करने की क्षमता होती है। ऐसे व्यक्ति में इतनी क्षमता होती है कि वह लोगों को किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित कर सकता है।
10. नीर-क्षीर विवेक : इससे संपन्न व्यक्ति में विवेकशीलता होती है। ऐसा व्यक्ति अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकने में सक्षम होता है।
11. कर्मण्यताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में स्वयं कर्म करने की क्षमता तो होती है। वह लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा दे सकता है और उन्हें सफल बना सकता है।
12. योगशक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में मन को वश में करने की क्षमता होती है। वह मन और आत्मा का फर्क मिटा योग की उच्च सीमा पा लेता है।
13. विनयः इस कला से संपन्न व्यक्ति में नम्रता होती है। ऐसे व्यक्ति को अहंकार छू भी नहीं पाता। वह सारी विद्याओं में पारंगत होते हुए भी गर्वहीन होता है।
14. सत्य-धारणाः इस कला से संपन्न व्यक्ति में कोमल-कठोर सभी तरह के सत्यों को धारण करने की क्षमता होती है। ऐसा व्यक्ति सत्यवादी होता है और जनहित और धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करता।
15. आधिपत्य : इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का गुण होता है। जरूरत पड़ने पर वह लोगों को अपने प्रभाव की अनुभूति कराने में सफल होता है।
16. अनुग्रह क्षमताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में किसी का कल्याण करने की प्रवृत्ति होती है। वह प्रत्युपकार की भावना से संचालित होता है। ऐसे व्यक्ति के पास जो भी आता है, वह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सहायता करता है।
🌹जय श्री राधे🌹https://www.instagram.com/shive_shakti/

रामचरित्र मानस की ये बाते, आप ने नही पढ़ी शायद ।।

🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹

1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।

10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।
यह जानकारी  महीनों के परिश्रम केबाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है । 
जय श्री राम 
🙏�  जय श्री राम   🙏
Ragunath temple prat

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

याद आएंगी अम्मा, जानिए जयललिता के वे फैसले जिनसे जीता लोगों का दिल


जयललिता एक  मास लीडर बनीं। उनके समर्थकों का समूह हर दौर में उनके साथ बना रहा। जबकि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है।



जयललिता की जनप्रियता  राजनीति  में महिलाओं की भागीदारी से जुड़े कई  मिथक  तोडऩे वाली है। गरीबों को भरपेट सस्ता खाना उपलब्ध  करवाना और शराबबंदी जैसे निर्णयों ने उन्हें लोगों के दिलों में पुख्ता जगह बनाने का मौका दिया। साथ ही महिलाओं की समस्याओं और सुरक्षा को लेकर भी जयललिता ने कई संवेदनशील निर्णय किए। 



वर्ष 1992 में उनकी सरकार ने बालिकाओं की रक्षा के लिए 'क्रैडल बेबी स्कीम' शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके। इस स्कीम को बहुत सराहा गया। उनकी  सरकार ने 1992 में ही राज्य में ऐसे पुलिस थाने भी खोले जहां केवल महिलाएं ही तैनात थीं। 



लड़कियों को शादी से पहले सरकार की ओर से दिए जाने वाले चार ग्राम सोने को बढ़ाकर आठ ग्राम करना भी उनकी जनप्रिय स्कीम रही। महिलाओं के लिए जरूरत की चीजें मुफ्त मुहैया करवाने की नीति ने भी उन्हें  लोकप्रिय बनाया। क्योंकि ये सुविधाएं महिलाओं के जीवन स्तर को सुधारने में बहुत मददगार साबित हुईं। 



बतौर  मुख्यमंत्री जयललिता ने  नवजात बच्चे और मां के लिए एक स्कीम, 'अम्मा बेबी किट' भी शुरू की। अम्मा बेबी किट में बच्चे के लिए कपड़े, मच्छरदानी, साबुन, शैम्पू और  खिलौनों जैसी कुल 16 चीजें शामिल थीं। 



यह किट बच्चों को जन्म देनेवाली महिलाओं को  दिया  गया। यह योजना इतनी लोकप्रिय  साबित हुई कि महिला वर्ग उनका बड़ा प्रशंसक बन गया। सस्ता भोजन दिए जाने की उनकी 'अम्मा कैंटीन' योजना को तो आम लोगों का इतना समर्थन मिला कि विपक्ष के पास भी इसके लिए कोई जवाब नहीं था। 



2001 में दोबारा सत्ता में आने के बाद भी उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगाने, हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकालने, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगाने, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड खारिज करने, बस किराया बढ़ाने और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा देने जैसे सख्त निर्णय भी  लिए। जिन्हें अधिकतर लोगों ने पसंद किया। ऐसे कई निर्णयों की वजह से लोगों के बीच उनकी जगह बनती गई। 



हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद उन्होंने फिर पशुबलि की अनुमति और किसानों को मुफ्त बिजली देनी पड़ी। बीस किलो चावल दिए जाने के फैसले पर तो उनकी आलोचना भी हुई। बावजूद इसके इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने गरीबों की नब्ज को मजबूती से पकड़ लिया था तथा उनके लिए कई योजनाएं भी शुरू की। 




जयललिता एक  मास लीडर बनीं। उनके समर्थकों का समूह हर दौर में उनके साथ बना रहा।  गौरतलब है कि भारत के राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा कम ही होता है जब किसी राजनीतिक व्यक्तित्व को लाखों लोग यूं पसंद करेंं और उसके हर निर्णय में साथ खड़े नजर आते हैं।  



हालांकि  उन पर सनकी और मूडी होने का ठप्पा भी लगा। उन्हें तुनुकमिजाज, अस्थिर और अक्खड़ मानने वाले लोग भी स्वीकार करते हैं कि वे   बहुत मज़बूत नेता रही हैं, जिनको जनता ने असीम प्रेम और सम्मान दिया। देश की राजनीति के इतिहास में कामयाब महिला राजनेताओं में अधिकांश वे ही नाम आते हैं, जिनका किसी न किसी सियासी घराने से ताल्लुक रहा है। 



किसी भी आम परिवार की महिला का राजनीति में आना और स्थान बनाना मुश्किल है। ऐसे में अम्मा के रूप में ख्याति और जनमानस के मन में स्थान पाना और सशक्त राजनेता बनना जयललिता की एक बड़ी उपलब्धि रही। भारत की राजनीतिक पार्टियों में महिलाओं को सहयोगी कार्यकर्ता के तौर पर  ही देखा जाता है। 



ऐसे में अम्मा  के कड़े तेवर और सधे निर्णय एक नई  इबारत कहे जा सकते हैं। जयललिता ने कई बार सफलता का परचम लहराकर यह साबित किया कि महिला राजनेता भी ना केवल अपनी सत्ता को कायम रख सकती हैं, बल्कि अच्छी रणनीतिकार भी हो सकती हैं। जयललिता की जीवनी 'अम्मा जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वींन' लिखने वाली वासंती कहती हैं, यह उनकी बड़ी  ताकत थी कि वे बहुत मज़बूत नेता बनीं रहीं। 



उनका पार्टी पर  बहुत मज़बूत नियंत्रण  रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनीति में एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता का आभामंडल ओजपूर्ण रहा। असल में देखा जाए तो जयललिता  ने जमीन से जुड़े हालातों को देखते हुए ही गरीबों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। 



इन योजनाओं ने ना केवल उनके लिए वोट बैंक  साधा बल्कि आम लोगों की भावनाओं को भी उनके साथ गहराई और संवेदनशीलता से जोड़ा।


आखिर क्या है! महादेव भगवान शिव के शिवलिंग का रहस्य ??

जानिये शिवलिंग (Shivling) का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व:-
आज के समय में कुछ अज्ञानी किस्म के प्राणियों ने परम पवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर पता नही क्या-क्या और कपोल कल्पित अवधारणाएं फैला रखी हैं। क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग का मतलब क्या होता है और, शिवलिंग किस चीज का प्रतिनिधित्व करता है ?
शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
दरअसल ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और, मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा, अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ हो सकता है! खैर जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं! उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो सूत्र मतलब डोरी/ धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है जैसे कि नासदीय सूत्रब्रह्म सूत्र इत्यादि! उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ: सम्पति भी हो सकता है और मतलब भी! ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।
“लिंग” एक संस्कृत का शब्द है जिसके निम्न उदाहरण है।
1.) त आकाशे न विधन्ते -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५
अर्थात रूप, रस, गंध और स्पर्श ये लक्षण आकाश में नही है किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है।
2.) निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकश स्य लिंगम् -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २०
अर्थात जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है वह आकाश का लिंग है अर्थात ये आकाश के गुण है ।
3.) अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । -वै०। अ ० २। आ ० २ । सू ० ६
अर्थात जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है, इसे काल कहते है, और ये काल के लिंग है।
4.) इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०
अर्थात जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है उसी को दिशा कहते है मतलब किये सभी दिशा के लिंग है।
5.) इच्छाद्वेषप्रयत ्नसुखदुःखज्ञाना न्यात्मनो लिंगमिति – न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०

अर्थात जिसमे (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो, वो जीवात्मा है और, ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है । इसीलिए शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारन इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है एवं, धरती उसका पीठ या आधार है और, ब्रह्माण्ड का हर चीज अनन्त शून्य से पैदा होकर अंततः उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।

रविवार, 4 दिसंबर 2016

Most Powerful God Shiva

Lord Shiva is one of the most powerful God. He is Bholenath, an innocent compassionate God. And fierce Mahakal at the same time. He is not only considered as Adiyogi but he is also considered as the God of Gods. He is omnipotent, omniscient and omnipresent. In spite of him being considered as the destructor of life one has to understand that he is the reason for re-birth as well. He is the one who possesses both the generative and destructive powers of nature. Shiva is a very complex form who has control over both the macro and micro levels of the cosmic energy. Even in temples you will find a separate shrine for Shiva recognising him as the most powerful and fascinating deity of the Hindu trinity.

Theres a story back to a point when Shri Vishnu and Brahma fought among themselves as to who was the most powerful between them. As the Gods predicted disastrous results out of such a controversy, they requested Shiva to intervene and find a solution. Shiva then took the form of a lingam and asked them to travel in search of the aadhi which signifies “the beginning” and antham which signifies “the end” of the lingam. Brahma flew upwards by transforming himself into a swan while Shri Vishnu travelled downwards by transforming himself into a boar. They remained unsuccessful in finding the beginning and end points of the lingam. Brahma finds a ketaki flower and requests it to tell a lie to Shiva about his victory over Vishnu in finding the beginning of the lingam. On doing so, Shiva appears from the centrally split part of the lingam and curses Brahma that he would not have any temples and people will never worship him. He passes the curse to the flower as well, by making it unsuitable and ineligible for worship. 🌀💀🌙🍃🕉
Hari Om Tat Sat ~ Jai Shri Mahakal! 


जानिए अपने आराध्य भगवान शिव शंकर के बारे में -

कौन है शिव ? शि संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। शि का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि व का अर्थ देने वाला यानी दाता।
क्या है शिवलिंग शिव की दो काया है? एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है। शिवलिंग का अर्थ है- शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न।
शिव, शंकर, महादेव का अर्थ भी जानें शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं - शिव शंकर भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालन और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है।
भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर क्यों कहा जाता है?
 शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं। दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है। यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिव शिव न होकर शव रह जाता है।
देवाधिदेव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है अमृत पाने की इच्छा से जब देव-दानव बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे, तभी समुद से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव विषपान के लिए तैयार हो गए। उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव खत्म कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भोले बाबाशिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार उसे जंगल में देर हो गई। तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची। वह सारी रात एक-एक पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता रहा। कथानुसार, बेल के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं। बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख शिव प्रसन्न हो उठे, जबकि शिकारी को अपने शुभ काम का अहसास न था। उन्होंने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। कथा से यह साफ है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव महिमा की ऐसी कथाओं और बखानों से पुराण भरे पड़े हैं।

शिव के स्वरूप भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं
जटाएं शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।
चंद्रचंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
त्रिनेत्रशिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।
सर्पहारसर
        🙌🙌 हर हर महादेव 🙌🙌