मंगलवार, 13 अगस्त 2019

Goddess Mahakali

Goddess Mahakali is the Hindu goddess associated with empowerment, shakti. She is the fierce aspect of the goddess Durga (Parvati). The name Kali comes from kāla, which means black, time, death, lord of death: Shiva. Since Shiva is called Kāla— the eternal time — the name of Kālī, his consort, also means "Time" or "Death" (as in "time has come"). Goddess Kali is regarded as the most fierce and destructive form of Shakti. She has a dark complexion, red eyes and has four arms. In one of Her hands She carries a sword (khadaga) and in another hand She carries the decapitated head of a demon. The other two hands are in the position of blessing Her devotees. She also wears a garland of heads of the demons She has killed which makes this form of the Goddess even more fearful and divine. Her dark skin colour, unorthodox look, the fiery tongue and bloodshot eyes are enough to send chills down the spine. But She is one of the most powerfulGoddess in Hindu mythology. Aghoris and other Tantrik cults worship Goddess Kali as the main deity along with Lord Shiva. Almost all the Tantrik cults in India refer to their presiding deity as the 'The Mother' by which they mean Goddess Kali. Maa Kali is worshiped as a nurturing Mother, a spiritual guide, a fiercewarrior, a defender, an avenger and the Goddess of all death, natural and otherwise. In her many forms she is lovable as well as terrible . Kali being a protecting Mother is also invoked to destroy all the evil or demonic forces in any form whether in your mind such as anger , selfishness , ego and many other bhavas in ourselves , She also destroys ignorance in order to bestow knowledge. She destroys darkness so that we may realize light. She destroys all pain, all sorrow, all misery and all the earthly travails and tribulations; and bestows upon us bliss, joy and immortality of being with her forever . As Vidya-Maya, Mother Parvati using Her aspect as Kali, destroys Avidya and takes us to her path .

Devi Kali is strongly associated with Lord Shiva. As per Shabdakalpadrum, nineteenth-century Sanskrit dictionary, Kali is derived from the shloka “Kalah Shivah Tasya Patniti Kali”, meaning “Shiva is Kala and his consort is Kali”

रविवार, 11 अगस्त 2019

क्या है रुद्राभिषेक, जानिए रुद्राभिषेक के आश्चर्यजनक लाभ

रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।


हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक किया जाता है।

परंतु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में मंत्र, गोदुग्ध या अन्य दूध मिलाकर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सबको मिलाकर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है किंतु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाए तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है। रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है।
वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुराणों में तो इससे संबंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है। वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में कहा गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।

भस्मासुर ने शिवलिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओं से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया। कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है कि जब हम अभिषेक करते हैं तो स्वयं महादेव साक्षात उस अभिषेक को ग्रहण करते हैं। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नहीं है, जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है।

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

शिव पुराण के अनुसार शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है।

शिव पुराण के अनुसार शिव-शक्ति का संयोग ही परमात्मा है। शिव की जो पराशक्ति है उससे चित्‌ शक्ति प्रकट होती है। चित्‌ शक्ति से आनंद शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, आनंद शक्ति से इच्छाशक्ति का उद्भव हुआ है, इच्छाशक्ति से ज्ञानशक्ति और ज्ञानशक्ति से पांचवीं क्रियाशक्ति प्रकट हुई है। इन्हीं से निवृत्ति आदि कलाएं उत्पन्न हुई हैं।

चित्‌ शक्ति से नाद और आनंदशक्ति से बिंदु का प्राकट्य बताया गया है। इच्छाशक्ति से 'म' कार प्रकट हुआ है। ज्ञानशक्ति से पांचवां स्वर 'उ' कार उत्पन्न हुआ है और क्रियाशक्ति से 'अ' कार की उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार प्रणव (ॐ) की उत्पत्ति हुई है।

शिव से ईशान उत्पन्न हुए हैं, ईशान से तत्पुरुष का प्रादुर्भाव हुआ है। तत्पुरुष से अघोर का, अघोर से वामदेव का और वामदेव से सद्योजात का प्राकट्य हुआ है। इस आदि अक्षर प्रणव से ही मूलभूत पांच स्वर और तैंतीस व्यजंन के रूप में अड़तीस अक्षरों का प्रादुर्भाव हुआ है। उत्पत्ति क्रम में ईशान से शांत्यतीताकला उत्पन्न हुई है। ईशान से चित्‌ शक्ति द्वारा मिथुनपंचक की उत्पत्ति होती है।

अनुग्रह, तिरोभाव, संहार, स्थिति और सृष्टि इन पांच कृत्यों का हेतु होने के कारण उसे पंचक कहते हैं। यह बात तत्वदर्शी ज्ञानी मुनियों ने कह है। वाच्य वाचक के संबंध से उनमें मिथुनत्व की प्राप्ति हुई है। कला वर्णस्वरूप इस पंचक में भूतपंचक की गणना है। आकाशादि के क्रम से इन पांचों मिथुनों की उत्पत्ति हुई है। इनमें पहला मिथुन है आकाश, दूसरा वायु, तीसरा अग्नि, चौथा जल और पांचवां मिथुन पृथ्वी है।

इनमें आकाश से लेकर पृथ्वी तक के भूतों का जैसा स्वरूप बताया गया है, वह इस प्रकार है - आकाश में एकमात्र शब्द ही गुण है, वायु में शब्द और स्पर्श दो गुण हैं, अग्नि में शब्द, स्पर्श और रूप इन तीन गुणों की प्रधानता है, जल में शब्द, स्पर्श, रूप और रस ये चार गुण माने गए हैं तथा पृथ्वी शब्द, स्पर्श, रूप , रस और गंध इन पांच गुणों से संपन्न है। यही भूतों का व्यापकत्व कहा गया है अर्थात्‌ शब्दादि गुणों द्वारा आकाशदि भूत वायु आदि परवर्ती भूतों में किस प्रकार व्यापक है, यह दिखाया गया है।

इसके विपरीत गंधादि गुणों के क्रम से वे भूत पूर्ववर्ती भूतों से व्याप्य हैं अर्थात्‌ गंध गुणवाली पृथ्वी जल का और रसगुणवाला जल अग्नि का व्याप्य है, इत्यादि रूप से इनकी व्याप्यता को समझना चाहिए। पांच भूतों (महत्‌ तत्व) का यह विस्तार ही प्रपंच कहलाता है।
सर्वसमष्टि का जो आत्मा है, उसी का नाम विराट है और पृथ्वी तल से लेकर क्रमशः शिवतत्व तक जो तत्वों का समुदाय है वही ब्रह्मांड है। वह क्रमशः तत्वसमूह में लीन होता हुआ अंततोगत्वा सबके जीवनभूत चैतन्यमय परमेश्वर में ही लय को प्राप्त होता है और सृष्टिकाल में फिर शक्ति द्वारा शिव से निकल कर स्थूल प्रपंच के रूप में प्रलयकालपर्यंत सुखपूर्वक स्थित रहता है।

अपनी इच्छा से संसार की सृष्टि के लिए उद्यत हुए महेश्वर का जो प्रथम परिस्पंद है, उसे शिवतत्व कहते हैं। यही इच्छाशक्ति तत्व है, क्योंकि संपूर्ण कृत्यों में इसी का अनुवर्तन होता है। ज्ञान और क्रिया, इन दो शक्तियों में जब ज्ञान का आधिक्य हो, तब उसे सदाशिवतत्व समझना चाहिए, जब क्रियाशक्ति का उद्रेक हो तब उसे महेश्वर तत्व जानना चाहिए तथा जब ज्ञान और क्रिया दोनों शक्तियां समान हों तब वहां शुद्ध विद्यात्मक तत्व समझना चाहए।

जब शिव अपने रूप को माया से निग्रहीत करके संपूर्ण पदार्थों को ग्रहण करने लगता है, तब उसका नाम पुरुष होता है।

बुधवार, 7 अगस्त 2019

Sushma Swaraj Ji Biography

भाजपा की फायरब्रांड नेता सुषमा स्वराज मुखर व्यक्तित्व और अपने संवाद के लिए जानी जाती थीं। उनके अटल तर्कों से विरोधी खौफ खाते थे तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करने की प्रवृत्ति के चलते सम्मान भी देते थे। सुषमा स्वराज सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री, पार्टी पदाधिकारी और विपक्ष की नेता सहित हर मोर्चे पर अव्वल रहीं।

आइए उनके यादगार जीवन पर नजर डालें...

Sushma Swaraj Ji Biography

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 में अम्बाला में हुआ था। सुषमा स्वराज के पिता श्री हरदेव शर्मा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे। जिस वजह से सुषमा स्वराज ने अपने आसपास संघ और राजनीति का असर शुरु से देखा। हालांकि सुषमा स्वराज ने अपने पिता से अलग अपने दम पर अपनी पहचान बनाई।

सुषमा स्वराज जी की शिक्षा – Sushma Swaraj Education
सुषमा स्वराज ने अम्बाला छावनी के एस.डी कॉलेज से बीए की पढ़ाई करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री ली। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अपनी सोच और हर बात को कहने की आदत ने उन्हें सर्वोच्चन वक्ता का सम्मान मिला। यही नहीं सुषमा स्वराज कॉलेज के दिनों में एनसीसी की सर्वोच्च कैडेट भी रही। सुषमा को लगातार 3 साल तक राज्य की सर्वोच्च वक्ता का सम्मान भी मिला।

सुषमा स्वराज जी का व्यक्तिगत जीवन – Sushma Swaraj in Hindi
सुषमा स्वराज ने स्वराज कौशल (Sushma Swaraj Husband) से शादी की है। स्वराज कौशल सुषमा स्वराज के साथ सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के पद पर कार्यरत थे। स्वराज कौशल सबसे कम उम्र में राज्यपाल का पद प्राप्त करने वाले व्यक्ति है। वह मिजोरम के राज्यपाल रहे है।

स्वराज कौशल 6 साल तक राज्यसभा सांसद भी रहे है। स्वराज दम्पति की उपलब्धियों के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है। सुषमा स्वराज और स्वराज कौशल की एक बेटी है जिसका नाम बांसुरी (Sushma Swaraj Daughter) है बांसुरी लंदन के इनर टेम्पल में वकालत की पढ़ाई कर रही है।

सुषमा स्वराज जी का राजनैतिक सफ़र – Sushma Swaraj Political Career
उन दिनों देश में आपातकाल लगा था और जयप्रकाश नारायण आपातकाल के पुरजोर विरोधी थे। आपतकाल से लोगों की स्थिति को बहुत खराब थी। इसी को देखते हुए सुषमा स्वराज ने भी जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का हिस्सा बने का फैसला लिया। सुषमा स्वराज ने इस आन्दोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

इसके बाद सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर शुरु हुआ। उन्होनें जनसंघ पार्टी को ज्वाइन किया जिसे आज भारतीय जनता पार्टी के नाम से जाना जाता है।

राजनीति में आने से पहले सुषमा स्वराज ने सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता के पद पर भी काम किया। सुषमा स्वराज को राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने का सम्मान भी प्राप्त है। सुषमा स्वराज 1977 पहली बार हरियाणा विधानसभा की सदस्य चुनी गई।

इस दौरान उन्हें हरियाणा सरकार में श्रम रोजगार मंत्री बनाया गया। इसके बाद साल 1988 में सुषमा स्वराज को एक बार फिर हरियाणा विधानसभा सदस्य चुना गया। इस बार उन्हें शिक्षा खाद्य और नागरिक मंत्री चुना गया।

साल 1990 में सुषमा स्वराज पहली बार राज्यसभा की सदस्य चुनी गई। इसके बाद साल 1996 में सुषमा स्वराज लोकसभा सदस्य चुनी गई। 1996 में बनी केंद्र सरकार में सुषमा स्वराज को सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय सौंपा गया। इसके बाद साल 1998 में वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी।

सुषमा स्वराज देश की राजधानी दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। हालांकि कुछ समय बाद ही उन्होनें दिल्ली विधानसभा पद से इस्तीफा दे दिया और लोकसभा सदस्य का पद जारी रखा। इसके बाद 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें दोबारा सूचना एंव प्रसारण मंत्री चुना गया। इसके बाद जब भी भाजपा की सरकार केंद्र में आई। सुषमा स्वराज को उनकी काबलियत को देखते हुए अहम मंत्रालय सौंपा गया था।

सुषमा स्वराज हरियाणा की विदिशा सीट से लोकसभा सदस्य भी थी। साथ ही विदेश मामलों में संसदीय स्थायी समिति की अध्यक्षा भी थी। सुषमा स्वराज को उनकी स्ट्रॉन्ग पर्सनैलिटी के लिए जाना जाता था। जो गलत पर किसी के भी खिलाफ बोलने से नहीं झिझकती थी।

सुषमा स्वराज जी का निधन – Sushma Swaraj Death
सुषमा स्वराज का 6 अगस्त 2019 में 67 साल की उम्र में हार्ट अटैक की वजह से एम्स में निधन हुआ। उनके निधन से कुछ दोनों पहले से ही उनकी तबियत ठीक नहीं थी।

नौ बार सांसद रह चुकी सुषमा स्वराज की आम लोगों मे अपार लोकप्रिय थीं। सुषमा स्वराज जी दिल्ली की सन 1977 में सबसे कम उम्र की राज्यमंत्री बनी थीं।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। सुषमा स्वराज तीन साल तक राज्य की प्रवक्ता रही है। राजनीति में आने के बाद सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी की पहली राष्ट्रीय मंत्री बनी। इसके बाद वो भाजपा की पहली महिला राष्ट्रीय प्रवक्ता भी बनी। वे कैबिनेट में भाजपा की पहली महिला मंत्री थी।

सुषमा स्वराज भारत की संसद में सर्वेक्षेष्ठ सांसद का सम्मान पाने वाली पहली महिला थी। इसके अलावा देश की राजधानी दिल्ली की वो पहली महिला मुख्यमंत्री भी थी स्वराज को देश की पहली महिला विदेश मंत्री होने का गर्व भी प्राप्त है।

यकीन करना मुश्किल होता है कि उस दौर में जब कई महिलाएं अपने अस्तित्व, अधिकारों से भी अनजान थी उस दौर में सुषमा स्वराज जैसी महिलाएं भी थी जिन्होनें राजनीतिक बैकग्राउंड न होने के बावजूद भी राजनीति में कदम रखा और राजनीति में लगातार सक्रिय बनी रही।

राजनीति के क्षेत्र में पहली महिला मुख्यमंत्री से लेकर पहली महिला विदेश मंत्री तक उन्होनें हर रिकॉर्ड को न केवल अपने नाम किया बल्कि महिलाओं को राजनीति में आकर देश बदलने के लिए प्रेरित भी किया।