गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

Shivratri 2020: पुराणों में महाशिवरात्रि

Shivratri 2020: पुराणों में महाशिवरात्रि।

 (Maha Shivratri) का सर्वाधिक महत्‍व बताया गया है. हिन्‍दू मान्‍यताओं में साल में आने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। महाशिवरात्रि (Mahashivratri) सनातन धर्म का प्रमुख त्‍योहार है। आदि देव महादेव के भक्‍त साल भर इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं।
मान्‍यता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, बेर और भांग चढ़ाने से भक्‍त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसे महादेव की विशेष कृपा मिलती है।
 वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि (Shivratri) आती है, लेकिन फाल्‍गुन मास की कृष्‍ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।

 पुराणों में महाशिवरात्रि का सर्वाधिक महत्‍व बताया गया है।

 सनातन मान्‍यताओं में साल में आने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। आपको बता दें कि इस बार 21 फरवरी को महाशिवरात्रि मनाई जा रही है।

महाशिवरात्रि की तिथि और शुभ मुहूर्त 

महाशिवरात्रि की तिथि: 21 फरवरी 2020

चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 21 फरवरी 2020 को शाम 5 बजकर 20 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्‍त:  22 फरवरी 2020 को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक 
रात्रि प्रहर की पूजा का समय: 21 फरवरी 2020 को शाम 6 बजकर 41 मिनट से रात 12 बजकर 52 मिनट तक 

क्‍यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि?

अब सवाल उठता है कि आखिर महाशिवरात्रि क्‍यों मनाई जाती?

दरअसल, महाशिवरात्रि मनाए जाने को लेकर कई मान्‍यताएं प्रचलित हैं। शिवरात्रि मनाए जाने को लेकर तीन मान्‍यताएं जो सर्वाधिक प्रचलित हैं वो इस प्रकार हैं:-

- एक पौराणिक मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी पहली बार प्रकट हुए थे। मान्‍यता है कि शिव जी अग्नि ज्‍योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हु थे, जिसका न आदि था और न ही अंत। कहते हैं कि इस शिवलिंग के बारे में जानने के लिए सृष्टि के पालनकर्ता भगवान नारायण ने  उसके ऊपरी भाग तक जाने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन्‍हें सफलता नहीं मिली। वहीं, सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा ने भी  उस शिवलिंग का आधार ढूंढना शुरू किया लेकिन वो भी असफल रहे।

- एक अन्‍य पौराणिक मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही विभन्नि 64 जगहों पर शिवलिंग उत्‍पन्न हुए थे। हालांकि 64 में से केवल 12 ज्‍योर्तिलिंगों के बारे में जानकारी उपलब्‍ध।

 इन्‍हें 12 ज्‍योर्तिलिंग के नाम से जाना जाता है।

- तीसरी मान्‍यता के अनुसार महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिव शंकर और माता शक्ति का विवाह संपन्न हुआ था।


पूजन सामग्री

महाशिवरात्रि के व्रत से एक दिन पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लें, जो इस प्रकार है: शमी के पत्ते, सुगंधित पुष्‍प, बेल पत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्‍ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, रोली, मौली, जनेऊ, पंच मिष्‍ठान, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, दक्षिणा, पूजा के बर्तन आदि।

महाशिवरात्रि की पूजन विधि 
- महाशिवरात्रि के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और व्रत का संकल्‍प लें।

- इसके बाद शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।

- जल चढ़ाने के लिए सबसे पहले तांबे के एक लोटे में गंगाजल लें, अगर ज्‍यादा गंगाजल न हो तो सादे पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं।

- अब लोटे में चावल और सफेद चंदन मिलाएं और "ऊं नम: शिवाय" बोलते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।

- जल चढ़ाने के बाद चावल, बेलपत्र, सुगंधित पुष्‍प, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्‍चा दूध, गन्‍ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, मौली, जनेऊ और पंच मिष्‍ठान एक-एक कर चढ़ाएं।

- अब शमी के पत्ते चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें:  अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।

- शमी के पत्ते चढ़ाने के बाद शिवजी को धूप और दीपक दिखाएं।
- फिर कर्पूर से आरती कर प्रसाद बांटें।

- शिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण करना फलदाई माना जाता है. 
- शिवरात्रि का पूजन 'निशीथ काल' में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है।  रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है हालांकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से किसी भी एक प्रहर में सच्‍ची श्रद्धा भाव से शिव पूजन कर सकते हैं।

पूजा का मंत्र 

महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना चाहिए।

शिव शक्ति पेज की ओर से आप सभी को शिवरात्रि की शुभकामनाए।
  
।। हर हर महादेव जय माँ आदिशक्ति ।।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

SHIVA – THE GOD OF DESTRUCTION

He who is without beginning and without end,
in the midst of confusion, the Creator of all,
of manifold form, the One embracer of the universe…
by knowing Him, one is released from all fetters.

SHIVA – THE GOD OF DESTRUCTION

Shiva literally means “auspiciousness, welfare”. He is the third god of the Hindu Triad and he is the god of destruction. He represents darkness , and it is said to be the “angry god”.

The term destruction as it relates to Shiva’s cosmic duties can be deceiving. Often Lord Shiva destroys negative presences such as evil, ignorance, and death.

Also, it is the destruction created by Lord Shiva that allows for positive recreation. For example, an artisan may melt down (i.e., destroy) old pieces of metal during his process of creating a beautiful piece of art.


Picture Credit ( Instagram/ramesh studio )

It is for this reason that Shiva holds a complementary role to Brahma, the god of creation. Shiva protects souls until they are ready for recreation at the hands of Brahma. Because of his connections with destruction, Lord Shiva is one of the most feared and heavily worshipped deities in Hinduism.

However, according to Hinduism, creation follows destruction. Therefore Shiva is also regarded as a reproductive power, which restores what has been dissolved. As one who restores, he is represented as the linga or phallus, a symbol of regeneration

SHIVA IS IN THE WORLD AND IN THE SAME TIME HE IS BEYOND THE WORLD
In the beginning nothing existed, neither the heaven nor the earth nor any space in between. So non-being, having decided to be, became spirit and said: “Let me become!”. He warmed himself, and from this was born fire. He warmed himself further still and from this was born light.

He is the never-created creator of all: He knows all. He is pure consciousness, the creator of time, all-powerful, all-knowing. He is the Lord of the soul and of nature and of the three conditions of nature. From Him comes the transmigration of life and liberation, bondage in time and freedom in eternity.

Some know him as Shiva the Beneficent. Others praise him as the Destroyer. For some he is Shiva the Ascetic, wandering the world. And for others still he is the Great Lord, king of all creation.

But it is as Lord of the Dance that all his aspects come together in one horrifically significant form. Nowhere else in the human world is there a clearer symbol of what a god is and does.

He has a 1,008 names, including Mahadeva (the great god), Mahesh, Rudra, Neelkantha (the blue-throated one), and Ishwar (the supreme god). He is also called Mahayogi, or the great ascetic, who symbolises the highest form of austere penance and abstract meditation, which results in salvation.

You are devadhidev, the greatest of God,
Yet you are one with Vishnu and Brahma, the presence of whom maketh the mere mortals awed;
You are Anant, who is infinite and endless,
"The pure one" who is unaffected by Sattva, Rajas and Tamas;
You are Bholenath, the most benevolent, merciful and kind,
Forever in deep meditation, absorbed in contemplation and always in our mind;
You are the destroyer - slayer of demons, whilst preserving the cosmos,
protecting the mankind from the evil utmost;
You are Ardhanarishwara, representing an amalgam of masculine and feminine energies of the universe,
Illustrating oneness with Shakti, which is depicted in every mythological verse;
The snake Vasuki, the holy Ganga, the iconic third eye and the crescent moon,
Showcases your magnifying power beyond death, your purity, as the sole supreme creator and destroyer - providing us long coveted boon;
In your hand is the Trishul, a trident of will, action and knowledge,
And Damaru, the drum which contains the cosmic sound of AUM, that the entire world acknowledge;
Your abode is the great mount Kailasa, the centre of universe,
Your body covered with ashes, portray the philosophy of death being ultimate reality of life perverse;
In you, we see our paramount Lord; in you, we see our supreme being,
Guiding forever, protecting forever - us perishable human being.

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

The chhatrapati shivaji maharaj

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. इनके पिता का नाम शाहजी भोसलें और माता का नाम जीजाबाई था. शिवनेरी दुर्ग पुणे के पास हैं, शिवाजी का ज्यादा जीवन अपने माता जीजाबाई के साथ बीता था. शिवाजी महाराज बचपन से ही काफी तेज और चालाक थे. शिवाजी ने बचपन से ही युद्ध कला और राजनीति की शिक्षा प्राप्त कर ली थी.

Picture Credit instagram/graphics_designer.suhas

भोसलें एक मराठी क्षत्रिय हिन्दू राजपूत की एक जाति हैं. शिवाजी के पिता भी काफी तेज और शूरवीर थे. शिवाजी महाराज के लालन-पालन और शिक्षा में उनके माता और पिता का बहुत ही ज्यादा प्रभाव रहा हैं. उनके माता और पिता शिवाजी को बचपन से ही युद्ध की कहानियां तथा उस युग की घटनाओं को बताती थीं. खासकर उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत की प्रमुख कहानियाँ सुनाती थी जिन्हें सुनकर शिवाजी के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा था. शिवाजी महाराज की शादी सन 14 मई 1640 में सईबाई निम्बलाकर के साथ हुई थीं.

शिवाजी महाराज का सैनिक वर्चस्व :

सन 1640 और 1641 के समय बीजापुर महाराष्ट्र पर विदेशियों और राजाओं के आक्रमण हो रहे थें. शिवाजी महाराज मावलों को बीजापुर के विरुद्ध इकट्ठा करने लगे. मावल राज्य में सभी जाति के लोग निवास करते हैं, बाद में शिवाजी महाराज ने इन मावलो को एक साथ आपस में मिलाया और मावला नाम दिया. इन मावलों ने कई सारे दुर्ग और महलों का निर्माण करवाया था.

इन मावलो ने शिवाजी महाराज का बहुत भी ज्यादा साथ दिया. बीजापुर उस समय आपसी संघर्ष और मुगलों के युद्ध से परेशान था जिस कारण उस समय के बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गो से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों के हाथों में सौप दी दिया था.
अचानक बीजापुर के सुल्तान बीमार पड़ गए थे और इसी का फायदा देखकर शिवाजी महाराज ने अपना अधिकार जमा लिया था. शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों को हथियाने की नीति अपनायी और पहला दुर्ग तोरण का दुर्ग को अपने कब्जे में ले लिया था.

शिवाजी महाराज का किलों पर अधिकार :

तोरण का दुर्ग पूना (पुणे) में हैं. शिवाजी महाराज ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना एक दूत भेजकर खबर भिजवाई की अगर आपको किला चाहिए तो अच्छी रकम देनी होगी, किले के साथ-साथ उनका क्षेत्र भी उनको सौपं दिया जायेगा. शिवाजी महाराज इतने तेज और चालाक थे की आदिलशाह के दरबारियों को पहले से ही खरीद लिया था.

शिवाजी जी के साम्राज्य विस्तार नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली थी तब वह देखते रह गया. उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने के लिये कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया था और लगान देना भी बंद कर दिया था.

वे 1647 ई. तक चाकन से लेकर निरा तक के भू-भाग के भी मालिक बन चुके थें. अब शिवाजी महाराज ने पहाड़ी इलाकों से मैदानी इलाकों की और चलना शुरू कर दिया था. शिवाजी जी ने कोंकण और कोंकण के 9 अन्य दुर्गों पर अपना अधिकार जमा लिया था. शिवाजी महाराज को कई देशी और कई विदेशियों राजाओं के साथ-साथ युद्ध करना पड़ा था और सफल भी हुए थे.

शाहजी की बंदी और युद्ध बंद करने की घोषणा :

बीजापुर के सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही गुस्से में था. सुल्तान ने शिवाजी महाराज के पिता को बंदी बनाने का आदेश दिया था. शाहजी उनके पिता उस समय कर्नाटक राज्य में थें और दुर्भाग्य से शिवाजी महाराज के पिता को सुल्तान के कुछ गुप्तचरों ने बंदी बना लिया था. उनके पिता को एक शर्त पर रिहा किया गया कि शिवाजी महाराज बीजापुर के किले पर आक्रमण नहीं करेगा. पिताजी की रिहाई के लिए शिवाजी महाराज ने भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए 5 सालों तक कोई युद्ध नहीं किया और तब शिवाजी अपनी विशाल सेना को मजबूत करने में लगे रहे.

शिवाजी महाराज का राज्य विस्तार :

शाहजी की रिहा के समय जो शर्ते लागू की थी उन शर्तो में शिवाजी ने पालन तो किया लेकिन बीजापुर के साउथ के इलाकों में अपनी शक्ति को बढ़ाने में ध्यान लगा दिया था पर इस में जावली नामक राज्य बीच में रोड़ा बना हुआ था. उस समय यह राज्य वर्तमान में सतारा महाराष्ट्र के उत्तर और वेस्ट के कृष्णा नदी के पास था. कुछ समय बाद शिवाजी ने जावली पर युद्ध किया और जावली के राजा के बेटों ने शिवाजी के साथ युद्ध किया और शिवाजी ने दोनों बेटों को बंदी बना लिया था और किले की सारी संपति को अपने कब्जे में ले लिया था और इसी बीच कई मावल शिवाजियो के साथ मिल गए थे.

शिवाजी महाराज का मुगलों से पहला मुकाबला :

मुगलों के शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत के बाद साउथ भारत की तरफ गया. उसे शिवाजी के बारे में पहले से ही मालूम था. औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने मामा शाइस्ता खान को सूबेदार बना दिया था. शाइस्ता खान अपने 150,000 सैनिकों को लेकर पुणे पहुँच गया और उसने 3 साल तक लूटपाट की.

एक बार शिवाजी ने अपने 350 मावलो के साथ उनपर हमला कर दिया था तब शाइस्ता खान अपनी जान निकालकर भाग खड़ा हुआ और शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 4 उँगलियाँ खोनी पड़ी. इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के पुत्र और उनके 40 सैनिकों का वध कर दिया था. उसके बाद औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया था.

जब हुई सूरत में लूट :

इस जीत से शिवाजी की शक्ति ओर मजबूत हो गयी थीं. लेकिन 6 साल बाद शाइस्ताखान ने अपने 15,000 सैनिको के साथ मिलकर राजा शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया था. बाद में शिवाजी ने इस तबाही को पूरा करने के लिये मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी. सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था. शिवाजी ने 4 हजार सैनिको के साथ सूरत के व्यापारियों को लुटा लेकिन उन्होंने किसी भी आम आदमी को अपनी लुट का शिकार नहीं बनाया.

आगरा में आमन्त्रित और पलायन :

शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया है. इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोष दरबार पर निकाला और औरंगजेब पर छल का आरोप लगाया. औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया था और शिवाजी पर 500 सैनिको का पहरा लगा दिया. कुछ ही दिनों बाद 1666 को शिवाजी महाराज को जान से मारने का औरंगजेब ने इरादा बनाया था लेकिन अपने बेजोड़ साहस और युक्ति के साथ शिवाजी और संभाजी दोनों कैद से भागने में सफल हो गये.

संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गये थे और बाद में सकुशल राजगड आ गये. औरंगजेब ने जयसिंह पर शक आया और उसने विष देकर उसकी हत्या करा दी. जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद शिवाजी ने मुगलों से दूसरी बार संधि की. 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लुटा था, यहाँ से शिवाजी को 132 लाख की संपति हाथ लगी और शिवाजी ने मुगलों को सूरत में फिर से हराया था.

शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक :

सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरंदर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे. बालाजी राव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से मिलते हुए प्रमाण भेजे थें. इस कार्यक्रम में विदेशी व्यापारियों और विभिन्न राज्यों के दूतों को इस समारोह में बुलाया था. शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की और काशी के पंडित भट्ट को इसमें समारोह में विशेष रूप से बुलाया गया था. आज भले ही हम सब के बीच शिवाजी महाराज का इतिहास ही रह गया हो लेकिन उनक जीवन चरित्र आज भी हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है. अगर कुछ बड़ा करने की जिद हो तो उसे पाना आसान हो जाता है. शिवाजी महाराज की तरह हमें भी अपना जीवन सामान्य जीने के बदले महान बनाना चाहिए और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे इस समाज का भला हो सके और हमारा देश उन्नति कर सके. शिवाजी महाराज की जीवनी पढने के लिए आपका धन्यवाद.

। जय भवानी जय शिवाजी ।।





सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

Shakti: A Universal Mother

माँ आदिशक्ति, सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवी में से एक है। वास्तव  में एक दिव्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा है जो स्त्री ऊर्जा और ब्रह्मांड के माध्यम से गतिशील बलों का प्रतिनिधित्व करती है। शक्ति, सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवी में से एक है, वास्तव में एक दिव्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा है जो स्त्री ऊर्जा और ब्रह्मांड के माध्यम से गतिशील बलों का प्रतिनिधित्व करती है। शक्ति, जो निर्माण के लिए जिम्मेदार है और परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण पहलू भी है, अक्सर राक्षसी शक्तियों को नष्ट करने और संतुलन बहाल करने के लिए देवी माँ प्रकट होती है।

एक महत्वपूर्ण ब्रह्मांडीय शक्ति के रूप में, शक्ति कई रूपों और नामों से जानी जाती है, जिसमें देवी मां, भयंकर योद्धा और विनाश की देवी काली के रूप में शामिल हैं। हिंदू धर्म में, हर देवता में एक शक्ति, या ऊर्जा शक्ति होती है। यह एक कारण है कि वह पूरे भारत में लाखों लोगों द्वारा पूजी जाती है।

शक्ति को पार्वती, दुर्गा, और काली के रूप में भी जाना जाता है, देवी माँ सर्वशक्तिमान हैं जिन्हें आप ताकत, उर्वरता और शक्ति के लिए कह सकते हैं। आप उसे एक शक्तिशाली महिला आकृति के रूप में पहचान सकते हैं या आप माँ शक्ति को एक ममता के भावों से देख सकते हो जो प्रत्येक क्षण अपने भक्तों की रक्षा करती है।



Picture Credit (Instagram/guri)

देवी माँ माता पार्वती के रूप में, वह विनाश और कायाकल्प कर लिए जिम्मेदार शिव के पीछे पत्नी और ऊर्जा है। शिव के साथ उन्होंने दो पुत्रों का जन्म दिया: कार्तिकेय, जिसने राक्षस तारक को जीत लिया और गणेश, जो ज्ञान और सौभाग्य के  देवता है। पार्वती प्रजनन क्षमता, वैवाहिक सुख, भक्ति, शक्ति और तप का प्रतीक हैं।

उन्हें मातृ देवी के रूप में सम्मानित किया जाता है, जो ऊर्जा, शक्ति और रचनात्मकता का एक सार्वभौमिक स्रोत है।

शक्ति एक महादेवी, या महान देवी है- जो अनिवार्य रूप से भगवान शिव की ऊर्जा का योग है। दुर्गा के रूप में, शक्ति एक भयंकर योद्धा है जो राक्षस महिषासुर के साथ-साथ कई अन्य दुष्ट जीवों को मारती है। काली शक्ति का दूसरा रूप है जिनकी पूजा पूरे भारत में होती है। काली, जिसका नाम आमतौर पर "काली एक" के रूप में अनुवादित किया गया है, विनाश की देवी है। हिंदू परंपरा में वह जीवन की विनाशकारी और अस्थायी प्रकृति का प्रतीक है। देवी माँ काली अपने भक्तों की  पृथ्वी पर और उसके बाद दोनों में उनकी रक्षा करती है।

शक्ति की कहानी

शक्ति के कई नामों और रूपों के में से एक माँ काली हैं जो राक्षसों की सेना के प्रमुख रक्तिबीज से लड़ने के लिए प्रसिद्ध है।

पौराणिक कथा के अनुसार कोई भी देवी देवता रक्तबीज दैत्य को अपने हथियारों से  नहीं मार  सकता था, इसलिए माँ काली ने उसका सारा खून पीकर उसे मार डाला। इस घटना के कारण माँ काली को आमतौर पर एक चमकदार लाल जीभ होने के रूप में चित्रित किया जाता है जो उनकी ठुड्डी के नीचे तक लटकती है। माँ काली को आमतौर पर चार भुजाओं के रूप में चित्रित किया जाता है: अपने दो बाएं हाथों में वह तलवार रखती है और अपने बालों के द्वारा रक्तीविजा का सिर काटती है, जबकि उसके दो दाहिने हाथ आशीर्वाद में निकले हुए हैं। वह मानव खोपड़ी का एक हार भी पहनती है।

शक्ति का वाहना

शक्ति के कई रूपों सहित देवता एक पशु या पक्षी से जुड़े हुए हैं जो वाहन के रूप में कार्य करते हैं। यह पशु या पक्षी केवल परिवहन का साधन नहीं है अपितु यह प्रकृति और मानव जाति के मध्य सन्तुलन रखने का संदेश भी है। और यह देवी या देवी की पहचान करने का एक तरीका है; यह उसकी शक्तियों का विस्तार भी है।

शेर दुर्गा और पार्वती दोनों के लिए वाहना है। दुर्गा, जो सभी देवताओं की शक्ति को शामिल करती हैं और योद्धा देवी की भूमिका निभाती हैं, अपने शेर को एक हथियार के रूप में और परिवहन के लिए उपयोग करती हैं।

शक्ति से प्रेरणा

याद रखें कि शक्ति एक सार्वभौमिक ऊर्जा शक्ति है। और जैसे उसे कई उद्देश्यों के लिए बुलाया जा सकता है, जैसे:

अपने स्वयं के व्यक्तिगत राक्षसों (काम, क्रोध, अहंकार, वासना) से लड़ने के लिए या सुरक्षा की मांग करते समय माँ की प्राथना करनी चाहिए। अपनी बुराई को नष्ट करेंने के लिए और संतुलन बहाल करने के लिए मां शक्ति की शरण में जा कर माँ के दिव्य रूप का स्मरण कर के माँ का आश्रीवाद पाया जा सकता है।

।। जय माँ शक्ति ।।

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

Veerbhadra – A Fearful Avatar Of Lord Shiva

वीरभद्र अवतार

भगवान शिव हिंदू धर्म के मुख्य देवताओं में से एक हैं, विष्णु और ब्रह्मा के साथ त्रिमूर्ति देवताओं में से एक हैं। उनकी पूजा  हिंदुओं द्वारा की जाती है जो उन्हें बहुत सम्मान देते हैं और उनका आशीर्वाद लेने के लिए उत्सुक रहते हैं।
इतिहास के दौरान भगवान शिव कई बार प्रकट हुए थे और भारतीय पौराणिक कथाओं के माध्यम से इन सभी का पर्याप्त संदर्भ है।

भगवान शिव के सबसे प्रतिष्ठित अवतारों में से एक उनका वीरभद्र अवतार है, जिनके साथ एक महान कथा है -


वीरभद्र भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न एक शक्तिशाली शिव अवतार था। यह प्रकटन दिखने में काफी डरावना था और जीवन से बड़ा था ओर सभी देवताओं से भी अधिक शक्तिशाली था। दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा का एक पुत्र था और दक्षिणायन या सती सहित कई पुत्रियों का पिता था। माता सती की भगवान शिव से शादी करने की इच्छा थी लेकिन दक्ष ने इस बात पर आपत्ति जताई क्यो की प्रजापति दक्ष भगवान शिव में किसी प्रकार की कोई आस्था विश्वास नही रखता था। प्रजापति दक्ष भगवान शिव का अन्य देवताओं की तरह सम्मान नहीं किया करता था। माता सती ने हट कर के भगवान शिव से विवाह कर लिया इस बात से प्रजापति दक्ष भगवान शिव से ओर भी ज्यादा नाराज हो गया। दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने भगवान शिव के बजाय सभी देवताओं को आमंत्रित किया। देवताओं द्वारा कई बार समझाने पर भी दक्ष ने भगवान भोलेनाथ को यज्ञ के लिए अनुपयुक्त माना। जब माता सती को यज्ञ की सूचना मिली तो माता सती बिना निमंत्रण के यज्ञ में जाने की जिद करने लगी। भगवान शिव ने माता सती को समझाया कि बिना निमंत्रण के जाना उचित नहीं है, लेकिन माता सती हठ कर के अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में चली गई। देवताओं की मौजूदगी में दक्ष द्वारा भगवान शिव को अपशब्द कहे गए माता सती इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकी। अपमानित हो कर माता सती क्रोधित होकर दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में कूद गयी और अपना शरीर का अग्नि को समर्पित कर देती है। सती दाह से  भगवान शिव नाराज हो जाते और क्रोधित हो कर भयंकर तांडव नृत्य करने लगे। क्रोधित भगवान शिव ने वीरभद्र नामक एक रुद्र को प्रकट कर दक्ष व यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया। वीरभद्र आदेश पाकर दक्ष के महल की तरफ दौड़ने लगा। जिस ने भी शिव के आदेश में रुकावट करने का प्रयास किया वीरभद्र ने उसे परास्त कर या खत्म कर दिया यहाँ तक यम के कर्मचारियों को तोड़ दिया और दक्ष को मार डाला। माता सती के वियोग में भगवान शिव तांडव नृत्य करने लगे थे जिस से समुद्रों की सीमाएं टूट गयी, जंगलों में आग लग गयी। सूर्य अस्त हो गया, चन्द्रमा की चमक शून्य हो गई, वायु (हवा) का वेग रुक गया अर्थात चारो ओर अस्थिरता हो गयी। इस घटना के बाद, भगवान ब्रह्मा ने स्वयं भगवान शिव से सभी देवताओं को क्षमा करने और दक्ष के जीवन को वापस करने की प्रार्थना की। भगवान शिव इसके लिए सहमत हो गए और उन्होंने दक्ष को जीवन वापस दे दिया और उनके सिर को एक बकरी के साथ बदल दिया। उसने उन सभी नुकसानों से भी अवगत कराया जो उसे हुए थे। दक्ष ने अपनी गलतियों के लिए भगवान शिव से माफी मांगी।
।। हर हर महादेव ।।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

भगवान शिव के सिद्धांत व परिभाषा

एक अच्छे भक्त की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह जिस देवता की पूजा करना चाहता है, उसके बारे में निरंतर आध्यात्मिक जिज्ञासा होती है। संबंधित जानकारी भक्त को धीरे-धीरे देवता में विश्वास बढ़ाने में मदद करेगी, और आध्यात्मिक अभ्यास को तेज करेगी। अक्सर, भक्त सूचना के गलत स्रोतों, जैसे टीवी श्रृंखला, फिल्मों या यहां तक ​​कि देवी-देवताओं पर लिखे गए उपन्यासों पर भी भरोसा करते हैं। निम्नलिखित लेख से भगवान शिव के भक्तों को भगवान शिव के सिद्धांत, उनकी शारीरिक विशेषताओं और उनके परिवार के अर्थ के बारे में सही और आधिकारिक जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलेगी। हम प्रार्थना करते हैं कि यह ज्ञान भक्तों को प्रभावी आध्यात्मिक अभ्यास के लिए एक मजबूत आधार बनाने में सहायता करता है, ताकि वे भगवान शिव की दिव्य कृपा प्राप्त कर सकें।

भगवान शिव के सिद्धांत की उत्पत्ति और परिभाषा

1. शिव शब्द (शिव) शब्द 'वश' (वश) के अक्षरों को उलट कर बनाया गया है। वश का अर्थ है आत्मज्ञान करना; इसलिए, जो आत्मज्ञान करता है वह शिव है। शिव पूर्ण हैं, आत्म-उज्ज्वल हैं। वह प्रकाशमय रहता है और ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है।

2. शिव शुभ और समृद्धि देने वाले सिद्धान्त हैं।

3. शिव का अर्थ है ब्रह्म और परमशिव का अर्थ है सर्वोच्च ब्रह्म

भगवान शिव के शारीरिक गुण

भगवान शिव के स्वरूप का गहरा आध्यात्मिक अर्थ और महत्व है। आइए हम कुछ जानकारी हासिल करें ताकि हम इसमें ज्ञान की व्याख्या कर सकें।

भगवान शिव का रंग

भगवान शिव का रंग सफेद है। भगवान शिव के मूल सफेद रंग के तीव्र कंपन को सहन करना साधक के लिए कठिन है। इसलिए, शिव का शरीर राख के रंग से ढंका है।
गंगा
आइए हम संक्षेप में गंगा शब्द की कुछ परिभाषाओं को समझते हैं
1. गामती भगवत्पदमिति गगागा।, अर्थात्, गंगा (गंगा) का अर्थ है, जो भगवान के राज्य के लिए (स्नान करने वाले व्यक्ति) को ऊपर उठाती है।

2. गाम्यते प्राप्यते मोक्षार्थिभिरिति गगागा। - शबदकल्पद्रुम, जिसका अर्थ है, वह जो मुक्ति की इच्छा रखता है, वह गंगा है।

पृथ्वी पर गंगा
पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल हिमालय के गंगोत्री में है। इसमें आध्यात्मिक गंगा के सूक्ष्म सिद्धांत का एक छोटा सा प्रतिशत है। गंगा का जल हमेशा पवित्र रहता है।

चांद
शिव अपने माथे पर चंद्र (चंद्रमा) को सुशोभित करते हैं। स्नेह, करुणा और मातृ प्रेम के गुणों के संयुक्त अस्तित्व के साथ चंद्रमा एक चरण है।

तीसरी आँख
1. शिव के माथे पर और सूक्ष्म रूप में खड़ी आंख, भौं के मध्य बिंदु के ठीक ऊपर उनकी तीसरी आंख मानी जाती है। यह अतिरिक्त ऊर्जा की सबसे बड़ी सीट भी है और इसे ज्योतिर्मठ, व्यासपीठ आदि नाम दिया गया है।

2. शिव की तीसरी आंख निरपेक्ष अग्नि सिद्धांत का प्रतीक है। यहां तक ​​कि शिव के चित्र में उनकी तीसरी आंख की ज्योति है।

3. शिव ने अपनी तीसरी आँख से अपनी कामना को समाप्त कर दिया। (वास्तव में एक जानकार व्यक्ति अपने ज्ञान की लौ के साथ अपनी सभी इच्छाओं को जला देता है।)

4. योगशास्त्र के अनुसार तीसरी आँख का अर्थ है कुंडलिनी (या सुषुम्ना नाड़ी) का केंद्रीय चैनल।

5. शंकर तीन आंखों वाला है, जिसका अर्थ है कि वह भूत, वर्तमान और भविष्य की घटनाओं को देख सकता है।

नाग (सर्प)
1. नाग (सर्प) को भी शिव का अस्त्र माना जाता है। ब्रह्मांड में मौजूद नौ नागों को 'नवनारायण' भी कहा जाता है। इन नौ नागों से नवनाथों की उत्पत्ति हुई है।

2. सर्प पुरुषोत्तम (ईश्वर सिद्धांत) का प्रतिनिधित्व है। वह देवता है जो संतान को प्राप्त करता है।

bhasma
भगवान शिव ने पूरे शरीर में भस्म (पवित्र राख) लगाया है। भस्म को भगवान शिव का ही परिचायक माना जाता है। भष्म मनुष्य जीवन में मोक्ष का संचायक है।

रूद्राक्ष
भगवान शिव ने रुद्राक्ष की माला को अपने सिर पर और गर्दन, हाथ, कलाई और कमर के चारों ओर घुँघराले बालों की जंजीरों में जकड़े हैं।

Vyaghrambar
व्याघ्र या बाघ (राजा और तम घटकों को दर्शाते हुए) क्रूरता का प्रतीक है। शिव ने ऐसे ही एक बाघ (राजा-तम) को मार डाला और उसकी त्वचा से एक विग्रहम्बर (सीट) बनाया।

भगवान शिव का परिवार
प्रत्येक देवता का एक परिवार होता है जिसमें सूक्ष्म दुनिया के अन्य देवता और कई अन्य प्राणी शामिल होते हैं। यह खंड भगवान शिव के परिवार पर एक आंख खोलने वाला है।

बातचीत करना
श्री पार्वतीदेवी (पार्वती और उनके रूपों की जानकारी सनातन के पवित्र ग्रंथ - शक्ति) में दी गई है।

बेटों
1. श्री कार्तिकेय
वह शिव और पार्वती के पुत्र हैं। उनका नाम कार्तिकेय इसलिए रखा गया क्योंकि उनका पालन-पोषण देवताओं के छह सितारों के नक्षत्र के रूप में किया गया था।

2. श्री गणपति
श्री गणपति भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र है जो प्रत्येक कार्यो में प्रथम पूजनीय है।

3. अन्य
कई शिशु देवता जैसे मुरुगन, शावस्ता, शास्ता, स्कंद, अटवी, अतीश्वर, अवलोकितेश्वर, अवलोकी, कोटापुत्र आदि बाद में शिव में विलीन हो गए।

शिवगण (भगवान शिव के परिचारक)
भगवान शिव के सहभागी शिवलोक (शिव के निवास) में निवास करते हैं और उनके सेवक हैं। नंदी, श्रृंगी, भगीरती, शैला, गोकर्ण, घण्टाकर्ण, वीरभद्र और महाविक्ता को मुख्य रूप से उपस्थित माना जाता है। विभिन्न प्रकार के शिव के परिचारक इस प्रकार हैं।

1. उग्रनाग
वे उग्रेश्वर नामक शंकर के रूप की आध्यात्मिक साधना करते हैं।

2. रुद्रगण
रुद्र का अर्थ होता है, जो रोता है। वे रोते हैं, भगवान के दर्शन के लिए तड़पते हैं।

3. भुतगण और पिशचनग
उपरोक्त तीन प्रकार के परिचारकों में से प्रत्येक के कार्य और आध्यात्मिक अभ्यास अलग-अलग हैं। कुछ परिचारक यम के निवास से शिव के पास आते हैं, जबकि अन्य लोग नंदी, बैल के माध्यम से उसे एक माध्यम के रूप में देखते हैं। प्रत्येक परिचर का रंग और अंग अलग-अलग होते हैं।

4. शिवदूत (शिव के दूत)
लघु, एक लाल रंग के रंग और दो तुस्क के साथ, इन शिवदुतों का कर्तव्य है कि शिव के निर्वासित भक्तों की आत्माओं को पुष्पक विमान (उड़ने वाला रथ) में शिव के निवास स्थान कैलास तक पहुँचाया जाए।

5. नंदी (वाहन)
बैल के रूप में नंदी शिव का वाहन है, और शिव के परिवार में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शिव की पूजा अर्चना के साथ नंदी की पूजा भी अनिवार्य है।

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

Why Is Lord Shiva Called Mahakal

भगवान शिव हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति देवताओं में से एक हैं, जिन्हें दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा व्यापक रूप से पूजा जाता है। लाखों भक्त भगवान शिव के विभिन्न मंदिरों में उनके शक्तिशाली आशीर्वाद मांगने के लिए जाते हैं।

हिंदू पौराणिक कथाओं के पन्नों के भीतर भगवान शिव से जुड़ी कई रोचक उल्लेख है हैं जो इस दिन भी उल्लेखनीय और आकर्षक हैं। भगवान शिव के शक्तिशाली मंत्र और पूजा उनके महान आशीर्वाद का आह्वान करते हैं, जिससे उनके भक्तों के जीवन में काफी सुधार हो सकता है।

भगवान शिव को महाकाल के रूप में क्यों जाना जाता है

1. महाकाल भगवान शिव के एक अवतार हैं, जिन्हें मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में पूजा जाता है। यह भगवान का एक रूप है जो दुनिया भर में भगवान शिव के भक्तों द्वारा व्यापक रूप से प्रतिष्ठित है।
2. हिंदू धर्म में 'काल' का अर्थ समय है और भगवान शिव की 'महा' या महानता को समय से बड़ा माना जाता है। भगवान शिव इतने शक्तिशाली हैं कि नश्वर समय की अवधारणा उन्हें किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करती है। इसके बजाय भगवान शिव के पास खुद को समाप्त करने की शक्ति है, क्योंकि वे ब्रह्मांड के दिव्य संहारक हैं और इसमें सभी चीजें हैं।

3. ऐसा कहा जाता है कि दक्ष यज्ञ की घटना के दौरान यज्ञ अग्नि में कूद गए थे जब उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव को विवाह में अपना हाथ देने से मना कर दिया था। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना तांडव शुरू किया, मृत्यु का नृत्य जिसने पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दी। इस रूप में भी, भगवान शिव को महाकाल के रूप में जाना जाता था।

4. भगवान शिव को महाकाल कहे जाने के पीछे एक और रोचक कथा एक ब्राह्मण और उसके चार पुत्रों की कहानी है, जो सभी भगवान शिव के समर्पित भक्त थे। एक बार जब वे भगवान शिव की तपस्या में व्यस्त थे, तो दशान नामक राक्षस ने उन पर हमला कर दिया। दशान बहुत शक्तिशाली थे क्योंकि उन्होंने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था।

5. जैसे ही दशान ब्राह्मणों पर हमला करने वाला था, पृथ्वी खुली हुई थी और भगवान शिव उसके सामने महाकाल के रूप में प्रकट हुए। जब दुशान ने वापस जाने से इनकार कर दिया, तो भगवान शिव ने उसे जलाकर राख कर दिया।

6. फिर उज्जैन के लोगों और राजा चंद्रसेन (जो शिव ने भी मदद की थी) के अनुरोध पर, भगवान शिव स्वयंभू मूर्ति या महाकालेश्वर के लिंगम के रूप में वापस रहने के लिए सहमत हुए।

7. महाकालेश्वर मंदिर में निवास करने वाले महाकाल शिव शारीरिक कष्ट और आध्यात्मिक बुराइयों से लोगों को आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करते हैं, और उन सभी को जो वर्ष भर अपने पवित्र मंदिर में दर्शन करने आते हैं।

जय महाकाल ~ हर हर महादेव

one year of Pulwama terror attack: What happened and how Bharat responded


Around 40 CRPF personnel were killed when their convoy was targeted by the suicide bomber of Pakistan-backed Jaish-e-Mohammad in J&K's Pulwama district on this day last year.
It was around 3:00 pm on this day, last year, when a Jaish-e-Mohammad (JeM) terrorist rammed a vehicle carrying explosives into the Central Reserve Police Force (CPRF) convoy on Srinagar-Jammu national highway.

Around 40 CRPF personnel were killed when their convoy was targeted by the suicide bomber of Pakistan-backed Jaish-e-Mohammad in Pulwama district.

Tensions flared up between India and Pakistan after the convoy of 78 buses, in which around 2500 CRPF personnel were travelling from Jammu to Srinagar, came under attack.

Nationwide protests erupted against the dastardly terror attack even as the country bid goodbye to its bravehearts. Leaders across the party lines and civil society condemned the attack and called for an appropriate response.

"I feel the same fire in my heart that's raging inside you," Prime Minister Narendra Modi would declare on February 17, days after the attack took place.

A day before, he had said that "all tears will be avenged" and the armed forces have been given "full freedom to decide the place, time, intensity and nature of the retaliation against the enemy".

United Nations and several countries from across the globe condemned the Pulwama terror attack and extended their support to India in the fight against terrorism.

Picture Credit ( CRPF)

China, the "all-weather friend" of Pakistan also backed the United Nations Security Council (UNSC) resolution on the "heinous and cowardly" Pulwama terror attack that was unanimously adopted by permanent and non-permanent member countries of the global body.

Following the dastardly attack, India had launched extensive diplomatic efforts to get JeM chief Masood Azhar designated as a global terrorist, which finally became a reality on May 1 when China lifted its technical hold on a proposal introduced by the US, the UK, and France in the 1267 Committee of the UN Security Council Around 12 days after the terror attack, in the wee hours of February 26, Indian Air Force jets bombed the JeM camp in Balakot, in Pakistan's Khyber Pakhtunkhwa.

"In an intelligence-led operation in the early hours of today(Feb 26), India struck the biggest training camp of JeM in Balakot. In this operation, a very large number of JeM terrorists, trainers, senior commanders and groups of jihadis who were being trained for fidayeen action were eliminated. This facility at Balakot was headed by Maulana Yousuf Azhar (alias Ustad Ghouri), the brother-in-law of Masood Azhar, Chief of JeM," the then Foreign Secretary would say in a press conference later in the day.

A day later on February 27, IAF foiled an attempt by PAF to strike at military installations in Jammu and Kashmir. In the aerial skirmish, Wing Commander Abhinandan Varthaman piloting a MiG-21 Bison aircraft shot down a much-advanced F-16 of PAF.

However, his aircraft was also hit and upon ejection, his parachute landed in PoK, where he was taken captive by Pakistani Army.

Under international pressure, Pakistan released the IAF pilot two days later, who returned to his country to a hero's welcome.

ऐ मेरी ज़मीं, महबूब मेरी,
मेरी नस-नस में तेरा इश्क़ बहे
फीका न पड़े कभी रंग तेरा,
जिस्मों से निकल के ख़ून कहे।
पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों शत शत नमन

जय हिंद की सेना 🇮🇳

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

What does Om mean?

In Hinduism, Om (also spelled Aum) is a Hindu sacred sound that is considered the greatest of all mantras.The syllable Om is composed of the three sounds a-u-m (in Sanskrit, the vowels a and u combine to become o) and the symbol's threefold nature is central to its meaning.It represent several important triads:

The three worlds - earth, atmosphere, and heavenThe three major Hindu gods - Brahma, Vishnu, and SivaThe three sacred Vedic scriptures - Rg, Yajur, and Sama

Thus Om mystically embodies the essence of the entire universe.This meaning is further deepened by the Indian philosophical belief that God first created sound and the universe arose from it.As the most sacred sound, Om is the root of the universe and everything that exists and it continues to hold everything together.

Om in Hindu culture

The syllable is discussed in a number of the Upanishads, which are the texts of philosophical speculation, and it forms the entire subject matter of one, the Mandukya.

AUM is a bow, the arrow is the self, And Brahman (Absolute Reality) is said to be the mark.(Mandukya Upanishad) The essence of all beings is the earth.The essence of the earth is water.The essence of water is the plant.The essence of the plant is man.The essence of man is speech.The essence of speech is the Rigveda.The essence of Rigveda is the Samveda.The essence of Samveda is OM.(Chandogya Upanishad) All those activities which people start with uttering the syllable OM do not fail to bear fruit.(Shankaracharya's Commentary on the Taittriya Upanishad 1.8.1) In the Puranas the syllable Om became associated in various ways with the major Hindu devotional sects.Saivites mark the lingam (a symbol of Shiva) with the symbol for Om, while Vaishnavites identify the three sounds as referring to the trinity of Vishnu, his wife Sri, and the worshiper.

Om is spoken at the beginning and the end of Hindu mantras, prayers, and meditations and is frequently used in Buddhist and Jain rituals as well.Om is used in the practice of Yoga and is related to techniques of auditory meditation.

From the 6th century, the written symbol of Om was used to mark the beginning of a text in a manuscript or an inscription.Om Parvat, a sacred peak at 6191m in the Indian Himalayas, is revered for its snow deposition pattern that resembles Om.


More Detailed Symbolism

With its threefold nature, special shape and unique sound, Om lends itself to a variety of detailed symbolic interpretations.The symbol of AUM consists of three curves (curves 1, 2, and 3), one semicircle (curve 4), and a dot.

The large lower curve 1 symbolizes the waking state (jagrat), in this state the consciousness is turned outwards through the gates of the senses.The larger size signifies that this is the most common ('majority') state of the human consciousness.

The upper curve 2 denotes the state of deep sleep (sushupti) or the unconscious state.This is a state where the sleeper desires nothing nor beholds any dream.

The middle curve 3 (which lies between deep sleep and the waking state) signifies the dream state (swapna).In this state the consciousness of the individual is turned inwards, and the dreaming self beholds an enthralling view of the world behind the lids of the eyes.

These are the three states of an individual's consciousness, and since Indian mystic thought believes the entire manifested reality to spring from this consciousness, these three curves therefore represent the entire physical phenomenon.

The dot signifies the fourth state of consciousness, known in Sanskrit as turiya.In this state the consciousness looks neither outwards nor inwards, nor the two together.It signifies the coming to rest of all differentiated, relative existence This utterly quiet, peaceful and blissful state is the ultimate aim of all spiritual activity.This Absolute (non-relative) state illuminates the other three states.

Finally, the semi circle symbolizes maya and separates the dot from the other three curves.Thus it is the illusion of maya that prevents us from the realization of this highest state of bliss.

The semi circle is open at the top, and when ideally drawn does not touch the dot.This means that this highest state is not affected by maya.Maya only affects the manifested phenomenon.This effect is that of preventing the seeker from reaching his ultimate goal, the realization of the One, all-pervading, unmanifest, Absolute principle.In this manner, the form of OM represents both the unmanifest and the manifest, the noumenon and the phenomenon.

As a sacred sound also, the pronunciation of the three-syllabled AUM is open to a rich logical analysis.The first alphabet A is regarded as the primal sound, independent of cultural contexts.It is produced at the back of the open mouth, and is therefore said to include, and to be included in, every other sound produced by the human vocal organs.Indeed A is the first letter of the Sanskrit alphabet.

The open mouth of A moves toward the closure of M. Between is U, formed of the openness of A but shaped by the closing lips.Here it must be recalled that as interpreted in relation to the three curves, the three syllables making up AUM are susceptible to the same metaphorical decipherment.The dream state (symbolized by U), lies between the waking state (A) and the state of deep sleep (M).Indeed a dream is but the compound of the consciousness of waking life shaped by the unconsciousness of sleep.

AUM thus also encompasses within itself the complete alphabet, since its utterance proceeds from the back of the mouth (A), travelling in between (U), and finally reaching the lips (M).Now all alphabets can be classified under various heads depending upon the area of the mouth from which they are uttered.The two ends between which the complete alphabet oscillates are the back of the mouth to the lips;both embraced in the simple act of uttering of AUM.

The last part of the sound AUM (the M) known as ma or makar, when pronounced makes the lips close.This is like locking the door to the outside world and instead reaching deep inside our own selves, in search for the Ultimate truth.

But over and above the threefold nature of OM as a sacred sound is the invisible fourth dimension which cannot be distinguished by our sense organs restricted as they are to material observations.This fourth state is the unutterable, soundless silence that follows the uttering of OM.A quieting down of all the differentiated manifestations, i.e. a peaceful-blissful and non-dual state.Indeed this is the state symbolized by the dot in the traditional iconography of AUM.

The threefold symbolism of OM is comprehensible to the most 'ordinary' of us humans, realizable both on the intuitive and objective level.This is responsible for its widespread popularity and acceptance.That this symbolism extends over the entire spectrum of the manifested universe makes it a veritable fount of spirituality.Some of these symbolic equivalents are:

Colors : Red, White, and Black.- Seasons : Spring, Summer, and Winter.- Periods : Morning, Midday, and Evening.- States : Waking-consciousness (jagriti), Dream (svapna), and deep-sleep (sushupti).- Spheres : Earthly, Heavenly, and Intermediary.- Poetic Meters : Gayatri (24 syllables), Trishtubh (44 syllables), and Jagati (48 syllables).- Veda : Rigveda (knowledge of the meters), Yajurveda (knowledge of contents), Samaveda (knowledge of extension).- Elemental Deity : Fire (Agni), Sun (Aditya), Wind (Vayu).- Manifestation of Speech : Voice (vak), Mind (manas), Breath (prana).- Priestly Function : Making offering, Performing ritual, and Singing.- Tendencies : Revolving, Cohesive, and Disintegrating.- Quality : Energy (rajas), Purity (sattva), and Ignorance (tamas).- Ritual fire : Of the home, of the Ancestors, and of Invocation.- Goddess : Amba, Ambika, and Ambalika.- Gods : Of the elements (Vasus), of the sky (Adityas), of the sphere-of-space (Rudras).- Deity : Brahma, Vishnu, Shiva.- Action : Creation, Preservation, and Destruction.- Power : of Action (kriya), of Knowledge (jnana), and of Will (iccha).- Man : Body, Soul, and Spirit.- Time : Past, Present, and Future.- Stages of Existence : Birth, Life, and Death.- Phases of the Moon : Waxing, Full, and Waning.- Godhead : Father, Mother, and Son.- Alchemy : Sulphur, Quicksilver, and Salt.- Buddhism : the Buddha, Dharma, and Sangha (three jewels of Buddhism).- Qabalism : Male, Female, and the Uniting intelligence.- Japanese Thought : Mirror, Sword, and Jewel.- Divine Attributes : Truth, Courage, and Compassion.

According to Indian spiritual sciences, God first created sound, and from these sound frequencies came the phenomenal world.Our total existence is constituted of these primal sounds, which give rise to mantras when organized by a desire to communicate, manifest, invoke or materialize.Matter itself is said to have proceeded from sound and OM is said to be the most sacred of all sounds.It is the syllable which preceded the universe and from which the gods were created.It is the "root" syllable (mula mantra), the cosmic vibration that holds together the atoms of the world and heavens.Indeed the Upanishads say that AUM is god in the form of sound.Thus OM is the first part of the most important mantras in both Buddhism and Hinduism, e.g.Om Namoh Shivai and Om Mani Padme Hum.

Another ancient text equates AUM with an arrow, laid upon the bow of the human body (the breath), which after penetrating the darkness of ignorance finds its mark, namely the lighted domain of True Knowledge.Just as a spider climbs up its thread and gains freedom, so the yogis climb towards liberation by the syllable OM.

The omnific and omniparous quality of OM makes it omnipresential, and in-omissible from any spiritual practice.As an omnipotent symbol, the yogi who penetrates its mystery is indeed truly omnicompetent and omnipercipient, and as an omniscient source, it is a virtual omnibus of sacred and mystical inspirations.

Sources

- "Om."Encyclopædia Britannica (2007).Encyclopædia Britannica Online.

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

Lord Shiva Soul of Universe

भगवान शिव प्रकृति, सादगी, उदारता, अमरता हैं, लेकिन नश्वर और शुद्ध हृदय पर शासन करते हैं। वह निर्दोष है लेकिन सर्वज्ञ है। स्वामी ने हमें योग 0f योग और ध्यान से परिचित कराया। ऐसी उल्लेखनीय विशेषताओं के कारण, उनके पास कई नाम हैं और प्रत्येक नाम उनके गुणों को दर्शाता है, और कभी-कभी उपस्थिति। एक वजह है कि अविवाहित लड़कियां अच्छे पति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करती हैं और यही भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती को हमेशा सम्मान और अधिकार देते हैं और उनसे प्यार करते हैं, वह उन्हें अपने पास बैठाती हैं और उनके प्रति वफादार रहती हैं। त्रिनेत्र-उनका एक नाम भगवान के माथे पर मौजूद तीसरी आंख को दर्शाता है और इसका उद्घाटन शिव के उग्र और क्रोध को दर्शाता है। जब भगवान शिव बेहद क्रोधित हो जाते हैं तो वे एक ऊर्जावान नृत्य करते हैं, तांडव और इस रूप में नटराज के रूप में जाना जाता है। यह ब्रह्मांड तीन सर्वोच्च शक्तियों द्वारा निर्मित और संतुलित है- भगवान ब्रह्मा [निर्माता], भगवान विष्णु [संरक्षक] और भगवान शिव [संहारक], जो हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति के रूप में एकजुट हैं।

भगवान शिव का रूप अप्रत्याशित है, एक शब्द में वर्णित नहीं किया जा सकता। लेकिन जैसा कि कहा गया है, शिव का पूरा शरीर राख से लिपटा हुआ है, शिव की तीन आंखें हैं- दो सामान्य आंखें ग्लोब के भौतिक पहलुओं को दर्शाती हैं और तीसरी आंख माथे पर मौजूद आध्यात्मिक पहलुओं को दर्शाती है। आंख के अलावा, माथे पर मौजूद तीन मैटेड ताले तीन जीवन गतिविधियों- मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक के एकीकरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शिव रूद्राक्ष की माला के साथ बाघ की त्वचा पहनते हैं और एक आभूषण के रूप में सांप। तीन बार गर्दन के चारों ओर सांप का गोल होना अतीत, वर्तमान और भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है। यह ऊर्जा और समय पर शिव के आधिपत्य का भी प्रतिनिधित्व करता है। गंगा नदी शिव के बालों से बनी हुई है। शिव का त्रिशूल दृढ़ संकल्प, ज्ञान और कार्य क्षमता की व्याख्या करता है। उसके सिर पर वक्र आकार का चंद्रमा समय की आवधिक प्रकृति का प्रतीक है। समुद्र-मंथन के दौरान, शिव ने जहर का सेवन किया, लेकिन इसे अपने गले से नहीं निकलने दिया, जिससे यह नीला दिखाई दिया, जिससे उन्हें नीलकंठ नाम से मान्यता मिली। भारत में, कई मंदिरों को भगवान शिव से जोड़ा जाता है। यद्यपि कुछ तीर्थों तक पहुंचना बहुत कठिन है, फिर भी भक्त शिव के नाम से डरते नहीं हैं और अपनी यात्रा पूरी करते हैं।

SHIV-KHORI- शुभ भावनाओं से युक्त एक पवित्र गुफा है, जो जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में स्थित भगवान शिव को समर्पित है। गुफा में, एक शिव लिंगम है जो दीवार की ऊपरी आंतरिक सतह से दूधिया तरल पदार्थ की बूंदों के साथ लगातार स्नान करता है।

MAHAKALESHWAR- एक ज्योतिर्लिंग मंदिर है [पीठासीन देवता स्वायंभु लिंगम है जिसे दक्षिणामूर्ति के रूप में जाना जाता है], उज्जैन [मध्य प्रदेश] में स्थित है और इसकी पवित्र राख पूजा अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है। भगवान शिव का आक्रामक चेहरा दोषियों के विध्वंस का प्रतीक महाकाल है।

VADAKKUNNATHAN- यह मंदिर केरल [थ्रिसूर शहर] में स्थित है और भगवान परशुराम द्वारा निर्मित है, जो वडक्कुनाथन [स्वामी शिव] को समर्पित है, जिन्हें लिंगम के वशीकरण के लिए घी प्रदान करके पूजा की जाती है।

BHIMASHANKAR- एक सुंदर मंदिर है, जिसमें नागर शैली की वास्तुकला है। यह ज्योतिर्लिंग मंदिर भीमा नदी और महाराष्ट्र में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण उस युद्ध के बाद हुआ था जिसमें भगवान शिव द्वारा राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया गया था, भगवान शिव सुंदरता के मंदिर हैं, सार्वभौमिक सत्य हैं, अनंत शक्ति है जो अशुद्धता को पवित्रता में बदल देती है। भगवान शिव का वाहन नंदी [एक बैल] है। मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए, मृत्यु के भय को दूर करने के लिए, शिव के मंत्रों का उच्चचार करना चाहिए।

|| जय शिव शम्भू ~ हर हर महादेव ||

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

शिव पूजा कैसे करे

भगवान शिव या शिव शंकर या भोलेनाथ, हिंदू धर्म में सभी देवताओं में सबसे दिव्य हैं। यही कारण है कि उन्हें 'महा देव' भी कहा जाता है, जिसका सीधा अर्थ है सबसे बड़ा भगवान।

हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ था। इसके अलावा, उसे अपनी उत्कृष्टता के लिए किसी भी रूप के किसी अन्य दिव्य समर्थन की आवश्यकता नहीं है। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे भगवान हैं जो अपने भक्तों को किसी भी अन्य भगवान की तुलना में तेजी से आशीर्वाद देते हैं। वह अपने प्यारे भक्तों की इच्छाओं को पूरा करता है और उनकी देखभाल करता है।

भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती को सार्वभौमिक माता-पिता माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि शिव और पार्वती पूरे ब्रह्मांड के पिता और माता हैं।

श्री गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं, और सभी देवताओं में से वे किसी भी अवसर पर सबसे पहले पूजे जाते हैं। कोई भी त्योहार या पूजा क्यों न हो, भगवान गणेश (जिसे गणपति भी कहा जाता है) की पूजा किसी और से पहले की जाती है। हिंदू धर्म में उनका महत्व है। भगवान शिव को कई अन्य नामों जैसे त्रिनेत्र, नीलाकंता, जटाधारा, और गंगाधारा से भी पुकारा जाता है।

शिव शंकर की पूजा कैसे करें

भगवान शिव सभी सांसारिक सुखों की अवहेलना करते हैं और इसलिए उन्हें दफन मैदान में रहने वाले देवता माना जाता है। हिंदू धर्म में अन्य देवताओं को सजावट के लिए गहने और सोने की आवश्यकता होती है, लेकिन भगवान शिव को ऐसी किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। सुंदर और महंगे कपड़ों की भी आवश्यकता नहीं है। वह सादे सफेद राख से खुश है और वह उसकी पूजा करने के लिए पर्याप्त है।

अपनी इच्छाओं और कामनाओं को शिव द्वारा प्राप्त करने के लिए, आपको एक मन और स्वच्छ और सुखद दिल के साथ प्रार्थना करने की आवश्यकता है।

यहां कुछ चीजें दी गई हैं जिन्हें आपको करना चाहिए: -

प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव के मंदिर में जाएं और उनसे साफ मन से प्रार्थना करें। इससे पहले स्नान करना न भूलें। ity महा मृत्युंजय मंत्र ’का पाठ करना सबसे महत्वपूर्ण है। जितना हो सके उतनी बार इसे याद करें। यह मंत्र एक मंत्र है जो सभी घातक बीमारियों पर काबू पाने में मदद करता है और आपको असामयिक मृत्यु से बचाता है।

ऊँ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगमधाम पूषीवर्धनम्
उर्वराकुमवि बन्धनं मृषाश्च मय्यथिताम्।

जब आप मंदिर जाते हैं तो हमेशा अपने माथे पर विभूति या भस्म का तिलक लगाते हैं। जब आप मंदिर जाते हैं और वापस आते समय बार-बार 'ओम नमः शिवाय' मंत्रों का उच्चारण करना नहीं भूलते हैं। शिव लिंग को अभिषेक करें। पानी और भस्म। इसके अलावा बिल्व के पत्ते चढ़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पत्ते भगवान शिव के सबसे पसंदीदा हैं। इन पत्तों को शिव लिंग पर रख दें। जैसा कि ऊपर बताया गया है, पहले भगवान गणेश की पूजा करें। भगवान शिव की पूजा करने से पहले भी। क्यों? क्योंकि गणपति प्रार्थना और आशीर्वाद प्रदर्शन के दौरान किसी भी या सभी बाधाओं को दूर करेंगे। यह अच्छा है कि आप भगवान शिव शंकर की पूजा करते समय एक दीप या ज्योति जलाएं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ज्योति देवी पार्वती (शिव की पत्नी) के दूसरे रूप भगवान शक्ति की प्रार्थना है। यदि यह संभव है तो शिव लिंग को जिलेटु फूल (मदार का पेड़, विशालकाय-निगल-पौधा, मुद्रा, आक) चढ़ाएं। .अगर यह संभव है तो भारत में अपने स्थान के पास किसी भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करें। जैसे वाराणसी, श्रीशैलम, नासिक, उज्जैन, आदि। यदि सोमवार को प्रार्थना मंदिर में कुछ प्रसाद ले जाए। यदि संभव हो तो वहां के लोगों को वितरित करें। यह बहुत अच्छी आदत है, शेयरिंग केयरिंग है, इसे कभी मत भूलना।
  Picture Credit instagram/@nidtoons
किसे भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए पुरानी बीमारियों या विकारों से छुटकारा पाने के लिए या दुख को कम करने के लिए। यहां तक ​​कि भगवान शिव के आशीर्वाद से असामयिक मृत्यु को रोका जाता है। उचित गाड़ी से बच्चा प्राप्त करने की इच्छा रखने से पहले यदि बार-बार गर्भपात हो जाता है। आध्यात्मिक प्रगति और ज्ञान प्राप्त करने के लिए तैयार रहें। जो भी जीवन में उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं वे भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि शिव शंकर प्रेम और विवाह में थे, इसलिए वे प्रेमियों को आशीर्वाद भी दे सकते थे। ऐसे लोग जो अपने वैदिक ज्योतिष चार्ट में कमजोर या परेशान करने वाले चंद्रमा हैं। सामान्य तौर पर, पंडित उन्हें मोती रत्न पहनने की सलाह देते हैं। लेकिन भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रार्थना करना अधिक लाभदायक होगा। यहां तक ​​कि उन्हें मोती रत्न पहनने की आवश्यकता नहीं हो सकती है। भगवान शिव की आराधना कैसे करें होमडू में सुबह-शाम घर पर और शाम को भी शिव लिंग की नियमित पूजा करें। हर एक दिन। शिव लिंग को अच्छी तरह से साफ करें और विभूति या भस्म लगाएं। एक दीपा / ज्योति और अगरबत्ती (अगरबत्ती) लगाएं। "ओम नमः शिवाय" का कुछ बार उच्चारण करें। सोमवार के दिन शिव को दूध या दूध से बनी कोई भी मिठाई चढ़ाएं।

भारत में जितने भी मंदिर हैं, उनके साक्षी भगवान शिव सबसे अधिक हिंदू हैं। उसे हर जगह, हर जगह प्यार हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा है कि रामायण के दौरान भगवान हनुमान के रूप में अवतरित हुए थे।

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

Maa Lakshmi

Maa Lakshmi’, as depicted in the Vedas, is the goddess of wealth and fortune, power and beauty. In her first incarnation, according to the Puranas, she was the daughter of the sage Bhrigu and his wife Khyati. She was later born out of the ocean of milk at the time of its churning. She, being the consort of Vishnu, is born as his spouse whenever he incarnates. When he appeared as Vamana, Rama and Krishna, she appeared as Padma (or Kamala), Sita and Rukmani. She is as inseparable from Vishnu as speech from meaning or knowledge from intellect, or good deeds from righteous-ness. He represents all that is masculine, and she, all that is feminine.

 

What is the meaning of Lakshmi?

Goddess Lakshmi means Good Luck to Hindus. The word ‘Lakshmi’ is derived from the Sanskrit word “Laksya”, meaning ‘aim’ or ‘goal’, and she is the goddess of wealth and prosperity, both material and spiritual. She is the goddess of prosperity, wealth, purity, generosity, and the embodiment of beauty, grace and charm.

Worship of a mother goddess has been a part of Indian tradition since its earliest times. Lakshmi is one of the mother goddesses and is addressed as “mata” (mother) instead of just “Devi” (goddess). Goddess Lakshmi is worshipped by those who wish to acquire or to preserve wealth. It is believed that Lakshmi (wealth) goes only to those houses which are clean and where the people are hardworking. She does not visit the places which are unclean/dirty or where the people are lazy.

She is the active energy of Vishnu. Her four hands signify her power to grant the four Purusharthas (ends of human life), Dharma (righteousness), Artha (wealth), Kama (pleasures of the flesh), and Moksha (beatitude). Representations of Lakshmi are also found in Jain monuments. In Buddhist sects of Tibet, Nepal and Southeast Asia, goddess Vasudhara mirrors the characteristics and attributes of Hindu goddess Lakshmi, with minor iconographic differences.

In Lakshmi’s iconography, she is usually described as enchantingly beautiful and sitting or standing on an open eight petaled lotus flower on a lake, and holding lotuses in each of her two hands. It is because of this, perhaps, that she is named as Padma or Kamala. She is also adorned with a lotus garland. Very often elephants are shown on either side, emptying pitchers of water over her, the pitchers being presented by celestial maidens. Her colour is variously described as dark, pink, golden yellow or white. While in the company of Vishnu, she is shown with two hands only. When worshipped in a temple (separate temples for Lakshmi are rather rare) she is shown seated on a lotus throne, with four hands holding Padma, Sankha, Amrtakalasa (pot of ambrosia) and Bilva fruit. Sometimes, another kind of fruit, the Mahaliilga (a citron) is shown instead of Bilva. Cascades of gold coins are seen flowing from her hands, suggesting that those who worship her gain wealth. When shown with eight hands, bow and arrow, mace and discus are added. This is actually the MahaLakshmi, an aspect of Durga.

If Lakshmi is pictured as dark in complexion, it is to show that she is the consort of Vishnu, the dark god. If golden yellow, that shows her as the source of all wealth. If white, she represents the purest form of Prakarti (nature) from which the universe had developed. The pinkish complexion, which is more common, reflects her compassion for creatures, since she is the mother of all. The lotuses, in various stages of blooming, represent the worlds and beings in various stages of evolution.

The fruit stands for the fruits of our labours. How-ever- much we may toil and labour, unless the Mother is gracious enough to grant the fruits of our labour, nothing will be of any avail. If the fruit is a coconut-with its shell, kernel and water-it means that from her originate the three levels of creation, the gross, the subtle and the extremely subtle. Amshtakalasa also signifies the same thing, viz., that she can give us the bliss of immortality.  In some of the sculptural depictions of Lakshmi, the owl is shown as her carrier-vehicle.

 

Goddess Laxmi Vrat and Festival


Although Goddesses Lakshmi is worshipped daily, the festive month of Kartik (October November) is Lakshmi’s special month. The festivals of Diwali and Sharad Purnima (Kojagiri Purnima) are celebrated in her honour. Diwali spiritually signifies the victory of light over darkness, knowledge over ignorance, good over evil, and hope over despair.

Gaja Lakshmi Puja is another autumn festival celebrated on Sharad Purnima, in many parts of India, on the full-moon day in the month of Ashvin (September–October). The Sharad Purnima, also called Kojaagari Purnima or Kumar Purnima is a harvest festival celebrated on the full moon day of the Hindu lunar month of Asvin. It marks the end of monsoon. There is a traditional celebration of the moon and is also called the ‘Kaumudi celebration’, Kaumudi meaning moonlight. On Sharad Purnima night, goddess Lakshmi is thanked and worshipped for the harvests.

 

Lakshmi MantraLakshmi Beej Mantra

 ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥

 Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah॥

Mahalakshmi Mantra

 ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

 Om Shreem Hreem Shreem Kamale Kamalalaye Praseed Praseed

 Om Shreem Hreem Shreem Mahalakshmaye Namah॥

Lakshmi Gayatri Mantra

 ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥

 Om Shree Mahalakshmyai Cha Vidmahe Vishnu Patnyai Cha Dheemahi

 Tanno Lakshmi Prachodayat Om॥

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

Quotes from Mahadev Part 2

महादेव :


चहचाने वाली चिड़ियों का गान हमेशा प्रसन्नता का गान नहीं होता, दुःख , पीड़ा और मोह ये सब अलग नहीं है , एक समान है , तुम्हारा मोह ही तुम्हारा दुःख है , और तुम्हारे मोह का त्याग तुम्हे  पूर्णरूप से सुखी कर सकता है |

महर्षि नारद :

ऋतुओ के संधि काल में (वसंत के आगमन और शीत के आगमन ) , उनका एकांकीपन , उनका हम सब से अलग रहना , स्वयं से भी अलग रहना , महादेव के इस वैराग्य में कई शताब्दियों कि पीड़ा है ।  शिव विभाजित है , उन्हें अलग कर दिया गया था सृस्टि के सञ्चालन के लिए उन्हें अपना सबसे प्रिय को अलग करना पड़ा था , आज ही के दिन , यही वो दिन है नंदी , शिव ने स्वयं को टुकड़ो में बाँट कर , प्रकृति को नया रूप दिया था ।

महादेव :

समाधी क्या है नंदी ? बस एक द्वार ही तो है , अस्तित्वा से निकल कर स्वयं को पाना है समाधी , जीवन से मृत्यु कि छलांग  है समाधी , होने से न होने कि यात्रा ।

      Picture Credit Instagram/@byshounak
नंदी :

प्रभु आप तो आदिनाथ है , सर्वग्य है , आप को कैसे इस अनुभूति का अर्थ मालूम न होगा ?
( http://theshivshakti.blogspot.com/2020/01/quotes-from-mahadev-part-1.html)
महादेव :

सर्वग्य कहो या आदिनाथ , ये नाम तो तुमने और तुम जैसे भक्तो ने मुझे दिया है , लेकिन तुम भूल रहो हो नंदी , सर्वग्य होना ही अहंकार को जन्म देता है , जब मुझमे अहंकार ही नहीं तो मैं सर्वग्य कैसे हुआ ?
संपूर्ण होने के लिए भी कुछ न जानना ज़रूरी होता है ।

Continue In Next Post

शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

All About Sanatan Dharma

बहुत से लोग हिन्दू धर्म को सनातन धर्म से अलग मानते हैं। वे कहते हैं कि हिन्दू नाम तो विदेशियों ने दिया। पहले इसका नाम सनातन धर्म ही था। फिर कुछ कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम आर्य धर्म था। कुछ कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम वैदिक धर्म था। हालांकि इस संबंध में विद्वानों के भिन्न भिन्न मत है।
सत्यम शिवम सुंदरम
'यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें।'- (ऋग्वेद-3-18-1)
सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है। जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है उस सत्य को ही सनातन कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।
 
वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।
 
सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था।
 
Picture Credit- Instagram/@byshounak

।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।- वृहदारण्य उपनिषद
भावार्थ : अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।
 
जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं। उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है। वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते। मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है। अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।
 
।।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- ईश उपनिषद
भावार्थ : सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती। वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है। यही सनातन सत्य है।
 
जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं। वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है। जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं।
 
जड़ पांच तत्व से दृश्यमान है- आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी। यह सभी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। यह अपना रूप बदलते रहते हैं किंतु समाप्त नहीं होते। प्राण की भी अपनी अवस्थाएं हैं: प्राण, अपान, समान और यम। उसी तरह आत्मा की अवस्थाएं हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति और तुर्या। ज्ञानी लोग ब्रह्म को निर्गुण और सगुण कहते हैं। उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक ‍कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले। यही सनातन धर्म का सत्य है।
 
ब्रह्म महाआकाश है तो आत्मा घटाकाश। आत्मा का मोक्ष परायण हो जाना ही ब्रह्म में लीन हो जाना है इसीलिए कहते हैं कि ब्रह्म सत्य है जगत मिथ्‍या यही सनातन सत्य है। और इस शाश्वत सत्य को जानने या मानने वाला ही सनातनी कहलाता है।
 
हिंदुत्व : ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की धर्म पुस्तक 'अवेस्ता' में 'हिन्दू' और 'आर्य' शब्द का उल्लेख मिलता है। दूसरी ओर अन्य इतिहासकारों का मानना है कि चीनी यात्री हुएनसांग के समय में हिंदू शब्द की उत्पत्ति ‍इंदु से हुई थी। इंदु शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची है। भारतीय ज्योतिषीय गणना का आधार चंद्रमास ही है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इन्तु' या 'हिंदू' कहने लगे। कुछ विद्वान कहते हैं कि हिमालय से हिन्दू शब्द की उत्पत्ति हुई है। हिन्दू कुश पर्वत इसका उदाहरण है। हिन्दू शब्द कोई अप्रभंश शब्द नहीं है अन्यथा सिंधु नदि को भी हिन्दू नहीं कहा जाता।
 
आर्यत्व : आर्य समाज के लोग इसे आर्य धर्म कहते हैं, जबकि आर्य किसी जाति या धर्म का नाम न होकर इसका अर्थ सिर्फ श्रेष्ठ ही माना जाता है। अर्थात जो मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ है वही आर्य है। बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य का अर्थ चार श्रेष्ठ सत्य ही होता है। बुद्ध कहते हैं कि उक्त श्रेष्ठ व शाश्वत सत्य को जानकर आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना ही 'एस धम्मो सनंतनो' अर्थात यही है सनातन धर्म।
 
इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था।
 
सनातन मार्ग : विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है।
 
हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
 
मोक्ष का मार्ग : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। यम, नियम, अभ्यास और जागरण से ही मोक्ष मार्ग पुष्ट होता है। जन्म और मृत्यु मिथ्‍या है। जगत भ्रमपूर्ण है। ब्रह्म और मोक्ष ही सत्य है। मोक्ष से ही ब्रह्म हुआ जा सकता है। इसके अलावा स्वयं के अस्तित्व को कायम करने का कोई उपाय नहीं। ब्रह्म के प्रति ही समर्पित रहने वाले को ब्राह्मण और ब्रह्म को जानने वाले को ब्रह्मर्षि और ब्रह्म को जानकर ब्रह्ममय हो जाने वाले को ही ब्रह्मलीन कहते हैं। 
 
विरोधाभासी नहीं है सनातन धर्म : 
सनातन धर्म के सत्य को जन्म देने वाले अलग-अलग काल में अनेक ऋषि हुए हैं। उक्त ऋषियों को दृष्टा कहा जाता है। अर्थात जिन्होंने सत्य को जैसा देखा, वैसा कहा। इसीलिए सभी ऋषियों की बातों में एकरूपता है। जो उक्त ऋषियों की बातों को नहीं समझ पाते वही उसमें भेद करते हैं। भेद भाषाओं में होता है, अनुवादकों में होता है, संस्कृतियों में होता है, परम्पराओं में होता है, सिद्धांतों में होता है, लेकिन सत्य में नहीं। 
 
वेद कहते हैं ईश्वर अजन्मा है। उसे जन्म लेने की आवश्यकता नहीं, उसने कभी जन्म नहीं लिया और वह कभी जन्म नहीं लेगा। ईश्वर तो एक ही है लेकिन देवी-देवता या भगवान अनेक हैं। उस एक को छोड़कर उक्त अनेक के आधार पर नियम, पूजा, तीर्थ आदि कर्मकांड को सनातन धर्म का अंग नहीं माना जाता। यही सनातन सत्य है।