शनिवार, 5 जून 2021

विश्व पर्यावरण दिवस पश्चिमी देशों का एक मजाक

वर्ष भर हम पर्यावरण का दोहन कर के हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाते हैं। यह सिर्फ पर्यावरण के प्रति हम लोगो की एक खानापूर्ति को दर्शाता है।  वर्ष भर हम ने प्रकृति के लिए क्या किया?

आज मानव सभ्यता आधुनिक विकास और टेक्नोलॉजी के विकास के पीछे भाग रही। कल तक जो "पढ़े लिखे लोग" पेड़ पोधो को, हवा पानी या पर्यावरण कुछ नही समझते  थे आज अचानक से पर्यावरण बचाओ का नारा लगाने लगे हैं। बड़ी बड़ी बाते करने लगे हैं। क्यो? क्यो की आज मानव जीवन की सांसो पर खतरा बढ़ने लगा है। आज दुनिया चिल्ला रही है ग्लोबल वार्मिंग से बचो, कभी सोचा है कि यह ग्लोबल वार्मिंग किस का नतीजा है? यह नतीजा पर्यावरण के दोहन का है। पानी, हवा, नभ, थल, समुद्र कसी भी जगह को हम ने नही छोड़ा हम ने अपने स्वार्थों के लिए पूरे ब्रह्मांड को प्रदूषित कर दिया है।

भारत जैसे महान देश की संस्कृति में प्रकृति को सर्प्रथम पूजने का विधान है। लेकिन आज यहाँ भी लोगो को चकाचौंध ले बैठी। आज जीव जंतुओं व पेड़ पौधों की पूजा करना उन में पानी देना लोगो को ढोंग व अंधविश्वास लगता है। सनातन धर्म मे इसलिए प्रकृति के तत्वों का सम्मान उन की पूजा करने की परम्परा है ताकि प्रकृति अपना भयावह रूप ना दिखाए। विश्व मे ऐसा कोई देश नहीं है जो पर्यावरण संकट पर मंथन नहीं कर रहा है। भारत मे भी सरकार व वैज्ञानिक लगे हुए है ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने के लिए। जहां दूसरे देश भौतिक चकाचौंध के लिए अपना सबकुछ खो चुके हैं, वहीं भारत के पास आज भी इस खतरे से विश्व को निकालने के लिए बहुत कुछ है। पश्चिमी देशों ने प्रकृति को हद से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। प्रकृति संरक्षण का कोई संस्कार पवित्र भारतभूमि को छोड़कर कहि ओर देखने में नहीं मिलता है। जबकि सनातन परम्पराओं में प्रकृति संरक्षण के उदहारण दिए गए हैं। सनातन धर्म में प्रकृति पूजन को प्रकृति संरक्षण के तौर पर मान्यता है। भारत में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को मां स्वरूप माना गया है। सनातन परंपरा में ग्रह-नक्षत्र, पहाड़ और वायु देवरूप माने गए हैं ओर इन की पूजा की जाती है।

पौराणिक काल से ही सनातन धर्म के ऋषि-मुनियों को प्रकृति संरक्षण और महत्व की जानकारी थी। हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि अगर प्रकृति का संरक्षण नही किया तो भविष्य में मानव जीवन मुश्किल होगा। मानव जीवन को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने प्रकृति के साथ मानव के संबंध विकसित कर दिए, ताकि मनुष्य को प्रकृति को गंभीर परिणामो को रोका जा सके।

यही कारण है कि  भारत में प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करके का नियम है। यह सब होने के बाद भी भारत में भौतिक विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति का दोहन पश्चिम के देशों जितना नही हुआ। लेकिन, यह भी सच है कि यदि ये परंपराएं न होतीं तो भारत की स्थिति भी गहरे संकट के किनारे खड़े किसी पश्चिमी देश की तरह होती। सनातन धर्म परंपराओं ने कहीं न कहीं प्रकृति का संरक्षण किया है। हिन्दू धर्म का प्रकृति के साथ घनिष्ठ समन्ध है।

इसे प्रमाणित करने के लिए दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र ही अग्नि की स्तुति में रचा गया है।

वैदिक संस्कृति में प्रकृति के प्रत्येक अवयव के संरक्षण और सम्वद्र्धन के सिद्धांत मिलते हैं।

हमारे ऋषियो के अनुसार "पृथ्वी का आधार जल और वन" है। इसलिए उन्होंने पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा है- 'वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव:' अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है।

जंगल को हमारे ऋषि आनंददायक कहते हैं- 'अरण्यं ते पृथिवी स्योनमस्तु' यही कारण है कि हिन्दू जीवन के चार महत्वपूर्ण आश्रमों में से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास का सीधा संबंध वनों से ही है।

सनातन धर्म दर्शन में "एक वृक्ष की मनुष्य के दस सन्तानो" से तुलना की गई है।।

'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।।


देवाधिदेव महादेव भगवान शिव बी पर्यावरण , पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता अर्थात् सम्पूर्ण प्रकृति के भी रक्षक एवं पोषक हैं । चूँकि वो " भगवान हैं और भगवान शब्द पाँच शब्दों बना है।।

भ से भूमि , ग से गगन , व से वायु , अ से अग्नि एवं न से नीर से मिल कर बना है।

अर्थात् प्रकृति के पाँच तत्व क्षिति , जल , पावक , गगन , वायु ही भगवान हैं और प्रकृति इन मूल तत्वों को रक्षा करते हैं या यू कहें कि प्रकृति ही भगवान हैं । इस दृष्टि से हम भगवान को प्रकृति का रक्षक एवं पोषक मान सकते हैं।।

भगवान शिव का निवास स्थान एवं तपःस्थान कैलाश पर्वत है । पर्वतों पर ही प्रकृति के सभी तत्व अर्थात् पर्यावरण , पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता के सभी कारक विद्यमान रहते हैं , इसलिए इनकी सुरक्षा एवं संरक्षा हो सके , इसीलिए सम्भवतः भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर ही अपना वास स्थान बनाया । यही नहीं प्रकृति के ऐसे तत्वों की सुरक्षा की भगवान शिव ने आत्मसात कर लिया या अपना प्रिय बना लिया , जिनके विनाश के लिए मानव तत्पर रहता है । जैसे सर्प एवं बिच्छू जैसे अनेक विषधर जीव , अनेक विषैले पौधे आदि । समाज में व्याप्त सभी प्रकार के विष को भगवान शिव आत्मसात कर लिए । यदि देखा जाय तो मोक्षदायिनी एवं जीवनप्रदायिनी माँ गंगा को भी अपनी जटाओं मे धारण कर जल संरक्षण का संदेश जन - जन में फैलाया । इस प्रकार प्रकृति के सम्पूर्ण संरक्षण हेतु ही भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर रहना पसंद किया । इस प्रकार एक कल्याणकारी देवता के रूप में भगवान शिव न केवल मानव जगत का कल्याण करते है , बल्कि पशु जगत , जीव जंतु जगत एवं पादप जगत को संरक्षण प्रदान कर सम्पूर्ण प्रकृति की रक्षा करते हैं।।

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