रविवार, 14 मार्च 2021

शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार है।

शिव महापुराण के अनुसार स्वयं भगवान शिव ही हैं जिन्‍होंने ब्रह्मा को वेद का ज्ञान दिया, शिव को ही संसार में जीव चेतना का संचार कहा गया है।

शिव का अर्थ ही कल्याण है, वही शंकर हैं, और वही रुद्र भी हैं। शंकर में शं का अर्थ कल्याण है और कर का अर्थ करने वाला। रुद्र में रु का अर्थ दुःख और द्र का अर्थ हरना- हटाना। इस प्रकार रुद्र का अर्थ हुआ, दुःख को दूर करने वाले अथवा कल्याण करने वाले।

भगवान शिव आदी अनन्त है। भगवान शिव देवो के देव महादेव के रूप में माने जाते हैं। वह अनादि परमेश्वर हैं और आगम-निगम आदि शास्त्रों के अधिष्ठाता भी हैं। शिव को ही संसार में जीव चेतना का संचार कहा गया है। इस तरह भगवान शिव और शक्ति स्‍वरूपा मां पार्वती ही इस जगत और ब्रह्मांड में अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं भगवान शिव ही हैं जिन्‍होंने ब्रह्मा को वेद का ज्ञान दिया।

ऐसी ही कई बातें शिव पुराण में वर्णित है आइए जानते हैं भगवान शिव से जुड़ी कुछ और बातें।

1. मान्यता के अनुसार, ‘कोटि रुद्र संहिता’ और ‘शत रुद्र संहिता’ में भगवान शिव के तेज का पुंज जागृत हुआ जिससे विष्णु की उत्पत्ति हुई। विष्णु के नाभि कमल पर ब्रह्मा की उत्पत्ति का उल्लेख है।

2. शिव ही संसार में जीव चेतना का संचार करते हैं। जबकि ब्रहमा सृष्टि की उत्पत्तिकर्ता हैं। इस तरह शिव प्रथम, विष्णु द्वितीय तथा ब्रह्मा तृतीय स्थान पर हैं। जबकि सांसारिक मान्यताओं में भगवान ब्रह्मा को प्रथम, भगवान विष्णु को द्वितीय तथा भगवान शिव को तृतीय प्रलयकारी के रूप में जाना जाता है।

3.वह परम शक्तिशाली भगवान शिव ही हैं जिन्‍होंने सृष्टि की उत्पत्ति और जगत के विस्तार, विकास के अलावा ब्रह्मस्वरूप को स्‍थापित किया, जिससे ‘हम क्या है, कैसे हैं, कहां से आए हैं, अंत और प्रारंभ क्या है, कर्म के आधार पर हमारे प्रारब्ध क्या होंगे’, इन अवस्थाओं का उपनिषदीय ज्ञान ऋषियों के माध्यम से हमारे सामने रखा।

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4. शिव एकमात्र परम अघोरी हैं जिनके माध्‍यम से संसार की समस्त दिव्य शक्तियां, क्रियाएं और प्राकृतिक दृष्टिकोण संबंधी ज्ञान हमें प्राप्त होता है। वह वर्ण व्यवस्था के साथ आश्रम व्यवस्था को भी हमें ज्ञान देने वाले हैं। अध्यात्मवाद के अनुसार, शिव तमाम अवस्थाओं और व्यवस्थाओं को अपने अंश मात्र से धारण किए हुए हैं।

5. शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो संसार का प्रबंधन संभालते हैं। उन्हीं के माध्‍यम से हमें ज्ञान वैराग्य जैसे मूलभूत दिव्य साधनाओं की जानकारी मिलती है। पूरे ब्रह्मांड के समग्र में भगवान शिव का परम तेज बिंदु ही अपनी गति से समस्त जीवात्माओं को प्रकाशित करता है, ये सभी जीवात्माएं भगवान शिव के उस स्वरूप का दर्शन व अनुभव करती हैं।

6. शिव ही परम गुरु हैं, उनकी ही कृपा से हमें जीवन को बेहतर बनाने की कला, वर्तमान से संघर्ष करते हुए समस्त विकारों पर नियंत्रण करके जीवन यात्रा को विजयी बनाने का ज्ञान मिलता है। शिव के जीवन से हमें गृहस्थ और संन्यास का दर्शन प्राप्‍त होता है।

भगवान शिव भोले भण्डारी हैं और जग का कल्याण करने वाले हैं। सृष्टि के कल्याण हेतु जीर्ण-शीर्ण वस्तुओं का विनाश आवश्यक है। इस विनाश में ही निर्माण के बीज छुपे हुए हैं। इसलिये शिव संहारकर्ता के रूप में निर्माण एवं नव-जीवन के प्रेरक भी हैं। सृष्टि पर जब कभी कोई संकट पड़ा तो उसके समाधान के लिये वे सबसे आगे रहे। जब भी कोई संकट देवताओं एवं असुरों पर पड़ा तो उन्होंने शिव को ही याद किया और शिव ने उनकी रक्षा की। समुद्र-मंथन में देवता और राक्षस दोनों ही लगे हुए थे। सभी अमृत चाहते थे, अमृत मिला भी लेकिन उससे पहले हलाहल विष निकला जिसकी गर्मी, ताप एवं संकट ने सभी को व्याकुल कर दिया एवं संकट में डाल दिया, विष ऐसा कि पूरी सृष्टि का नाश कर दें, प्रश्न था कौन ग्रहण करे इस विष को। भोलेनाथ को याद किया गया गया। वे उपस्थित हुए और इस विष को ग्रहण कर सृष्टि के सम्मुख उपस्थित संकट से रक्षा की। उन्होंने इस विष को कंठ तक ही रखा और वे नीलकंठ कहलाये। इसी प्रकार गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये भोले बाबा ने ही सहयोग किया क्योंकि गंगा के प्रचंड दबाव और प्रवाह को पृथ्वी कैसे सहन करे, इस समस्या के समाधान के लिये शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को समाहित किया और फिर अनुकूल गति के साथ गंगा का प्रवाह उनकी जटाओं से हुआ। ऐसे अनेक सृष्टि से जुड़े संकट और उसके विकास से जुड़ी घटनाएं हैं जिनके लिये शिव ने अपनी शक्तियों, तप और साधना का प्रयोग करके दुनिया को नव-जीवन प्रदान किया। 

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