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मंगलवार, 7 मार्च 2017

शिव पूजा

शिव पूजा विधि

श्री शिवमहापुराण में एक सूत्र इस प्रकार से है :- वेदी पर स्थापित प्रतिमा में, अग्नि में और ब्राह्मण के शरीर में षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। उक्त तीनो प्रकार में उत्तरोत्तर पूजन करना श्रेष्ठ है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण विद्येश्वर संहिता अध्याय १४ श्लोक२४) ब्राह्मण के षोडशोपचार पूजन में ये प्रक्रियाएं हैं। एक दिन पूर्व ब्राह्मण देवता को घर से सम्मानपूर्वक अपने घर लाना, उनके चरण धोकर चरणामृत पीना, उन्हें जल पान कराना, उनकी तेल-पंचामृत-पंचगव्य से अभिषेक करना, शरीर पोंछना, इत्र लगाना,भस्म त्रिपुण्ड़ लगाना , वस्त्र -उपवस्त्र पहनाना, पुष्प-माला पहनाना, धूप करना, पंच पकवान, ऋतु-फल खिलाना, दक्षिणा देना, आरती करना, चॅंवर डुलाना, चरण -सेवन करना और घर तक पहुॅचाने जाना।

मैं इस प्रकार का नित्य ब्राह्मणों का पूजन करू- यह वरदान विष्णु के अवतार कृष्ण ने ब्राह्मण बालक उपमन्यु (ऋषि व्याघ्रपाद के पुत्र, द्यौम्य के बड़े भाई) से दीक्षा लेकर हिमालय पर १६ महीने तपस्या करके प्रभु शिव एवं पार्वती से आठ-आठ वरदानों में यह वरदान(ब्राह्मणों का नित्य पूजन) भी मॉंगा था।श्री गणेश जो कि प्रथम पूज्य है, विघ्ननाशक है तथा सब सिद्धियों को देने वाले हैं, उनकी पूजा की सिद्धि के लिए भी ब्राह्मणों का पूजन अनिवार्य है। (प्रमाण श्री शिवमहापुराण कुमारखंड अध्याय १८ ) शास्त्रों में पॉंच प्रकार के ब्राह्मण वर्णित है। यहॉं ब्राह्मण का अर्थ है जो जन्म और कर्म से ब्राह्मण हो। आपको जिस ब्राह्मण का नित्य पूजन करना है, उसके लक्षण निम्न होने चाहियें :- वह जन्म कर्म का ब्राह्मण हो, गुरू परम्परा से निर्गुण - निराकार अजन्मा ब्रह्म(शिव) के कर्मकाण्ड में दीक्षित हो, मंत्रों से रूद्राक्ष और भस्म त्रिपुण्ड़ धारण करता हो, श्री शिवमहापुराण २४६७२ श्लोक वाले का नित्य पूजन कर, साष्टॉंग प्रणाम कर, आजीवन मर्यादापूर्वक पाठ करता हो, नित्य दिन में १२ बार नर्मदेश्वर शिवलिंग का जल बिल्व पत्रादि से पूजा करता हो, नित्य सौ माला ऊॅं नम: शिवाय मंत्र को जपता हो, नित्य व्रत अथवा महिने में दस व्रत करता हो।(दोनों अष्टमी, दोनों एकादशी, दोनो प्रदोष तथा सभी सोमवार) प्रदोष का विशेष पूजन करता हो। हर मास शिवरात्रि को निर्जला-निराहार, रात्रि जागरण पूर्वक चार - पूजन करता हो, दिव्य नदी नर्मदा के तट पर रहता हो और प्राप्त दान में से चतुर्थांश हर माह दान करता हो। दिव्य नदी नर्मदा के नाभिक्षेत्र, दक्षिण-तट पर स्थापित श्री विमलेश्वर महादेव आश्रम में ऐसे गुरू परम्परा से दीक्षित , नित्य व्रत रखने वाले कर्मकाण्डी ब्राह्मण उपलब्ध है। ऐसे ब्राह्मणों का नित्य पूजन करने से और उनके द्वारा अनुष्ठान करवाने पर आपको घर बैठे निम्न लाभ प्राप्त होंगे जो कि विश्व में अन्यत्र कहीं संभव नहीं है।
सांसारिक सभी कामनाओं की प्राप्ति, पुराने सभी पापों का नाश(अब आपको पुराने पापों का बुरा फल भोगना नहीं पडेगा),शत्रु पीडा, ग्रह पीड़ा का नाश, पितरों की सद्गति, सुखद बुढापा, शांतिपूर्ण मृत्यु, निश्चित रूप से अगला जन्म राजकुल अथवा योगी कुल में प्राप्त होना, निश्चित रूप से तीन जन्मों में मुक्ति।

(२४) श्री गणेश की उत्पत्ति का रहस्य

श्री गणेश प्रथम पूज्य क्यों है ? श्री गणेश की विद्यिवत दीक्षा लेकर पूजा करने का फल, श्री गणेश की पूजा से पूरा फल क्यों नहीं मिल रहा है?
सभी धर्मशास्त्रों (वेद-पुराणादि)प्रभु शिव को सर्वोपरि मानते है फिर प्रभु शिव और पार्वती जगदम्बा ने मिलकर श्री गणेश क्यों उत्पन्न किया ? प्रभु शिव ने ही गणेश को अनेक वरदान दिये, प्रभु शिव ने ही प्रथम स्वयं गणेश पूजन किया। ब्रह्मा -विष्णु-महेश ने एक साथ गणेश को प्रथम पूजित होने का वरदान दिया फिर भी ये गणेश प्रभु शिव और पार्वती की आज्ञा के बिना आपका कार्य नहीं करते।

जो व्यक्ति अपने विश्वस्त एवं योग्य शिष्यों के तीनों गुणों(तामस, राजस, सात्विक) को हटाकर प्रभु शिव का साक्षात्कार करा देता है वही गुरू कहने योग्य हैं ( श्री शिव महापुराण विद्येश्वर संहिता अ०१८ श्लोक ८५-९८ पृष्ठ ७०-७१) जिसके मस्तक पर भस्म त्रिपुण्ड नहीं हो, शरीर में रूद्राक्ष धारण किया न हो और मुख में शिव नाम न हो ऐसे अधम को छोड़ देना चाहिए( श्री शिव महापुराण विद्येश्वर संहिता अ०२३ श्लोक १३ पृष्ठ ८२)पापों का विनाश करने के लिए ही रूद्राक्ष धारण करना कहा गया है। इसीलिए सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले इस रूद्राक्ष को अवश्य धारण करना चाहिए शिव भक्तों को, विष्णु भक्तों को तथा चारों वर्णो को, सभी स्त्रियों को धारण करना चाहिए।(प्रभु शिव ने पार्वती को यह गुप्त ज्ञान दिया)( श्री शिव महापुराण विद्येश्वर संहिता अ०२५ पृष्ठ ८८-९२)


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