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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मत्स्य अवतार

भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहला अवतार मत्स्य अवतार, दूसरा कच्छप(कुर्म) अवतार, तीसरा वराह अवतार, चौथा नरसिंह अवतार, पांचवा वामन अवतार, छठवां परशुराम अवतार, सातवा श्री राम अवतार, आठवां श्रीकृष्ण अवतार, नवा महात्मा बुद्ध अवतार (मान्यता के अनुसार) हम यहाँ किसी दावे के साथ नही कह सकते हैं, क्यो की वेदों में ऐसा कोई उल्लेख नही है। दसवा अवतार कल्कि अवतार जो कलयुग का अंत करने के लिए कलयुग के अंत समय में जन्म लेंगे।
मत्स्य अवतार

भगवान विष्णु के  दशावतार में  प्रथम अवतार  मत्स्य अवतार है। पृथ्वी पर एक बहुत धर्मात्मा राजा सत्यव्रत रहता था एक दिन  प्रातः वह नदी में सूर्यदेव को अग्र दे रहे थे। तब उनके हाथो के जल में एक छोटी सी मछली(मत्स्य) आई और वह मछली बोली है राजन, आप मेरी रक्षा कीजिए अगर आप मुझे इस जल में वापस छोड़ देंगे तो मुझे यहां बडी मछली खा जाएँगी एक राजा का कर्तव्य होता है कि वह हर प्राणी की रक्षा करे अतः है राजन आप मेरी भी रक्षा कीजिए और आप मुझे अपने राज्य में छोटा सा स्थान देने की कृपा करे।


PC @jegarupan_vathumalai/Instagram

राजा बोले ठीक है मैं तुम्हे अपने महल में ले चलता हूं। राजा महल में पहुंचे और एक छोटे से सोने के पात्र में जल भरकर उसे उस सोने के पात्र में डाल दिया और कहा कि अब तुम सुरक्षित हो और यह कह कर वहां से चल दिए थोड़ी देर बाद मछली ने फिर पुकारा राजन मेरी रक्षा करो इस जल पात्र में मेरा दम घुट रहा है मुझे सांस लेते नहीं आ रहा है यह सुनकर राजा वापस आया और देखा कि वह मछली सोने के पात्र उतनी बड़ी हो गई है राजा सोचने लगा की इतनी जल्दी यह मछली इतनी बड़ी कैसे हो गई राजा को आश्चर्य हुआ राजा ने उसे दूसरे बड़े पात्र में डाल दिया फिर राजा जाने लगे थोड़ी देर बाद मछली फिर पुकारने लगी राजन मेरी मदद करो मुझे सांस लेने में दिक्कत आ रही है, राजा फिर वापस आए और उसे देखा तो वह मछली बड़े पात्र उतनी बड़ी हो गई राजा फिर सोचने लगा की इतनी जल्दी कोई मछली कैसे बड़ी हो सकती है राजा को लगा कि यह कोई चमत्कारी मछली है फिर राजा ने सोचा की यह मछली इतनी जल्दी बड़ी हो रही है इसे अब समुद्र में ही छोड़ना पड़ेगा।

राजा ने उस मछली को समुद्र में छोड़ा छोड़ते ही उस मछली (मत्स्य)का आकार और अधिक बढ़ने लगा राजा समझ गया की यह मछली के रूप में कोई दैविक शक्ति है राजा ने मछली के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की मैंने अपने जीवन में इतनी तीव्रता से बढ़ता जल जीव या अन्य कोई जीव नहीं देखा आप मुझ पर कृपा करें अपने असली रूप में आने की


राजा की इस प्रार्थना को सुनकर भगवान विष्णु ने अपना चतुर्भुज रूप दिखाया राजा कहने लगे की हे प्रभु आपको मेरा शत शत नमन कि आप मेरे महल में आए कभी कभी आप इतना सूक्ष्म रूप ले लेते हैं कि मनुष्य के हाथों में आ जाते हैं और कभी इतना विशालकाय रूप ले लेते हैं की यह ब्रह्मांड भी छोटा लगने लगता है


फिर भगवान विष्णु ने कहा कि हे राजन आज से 7 दिन बाद  भूलोक समित तीनों लोक प्रलय के कारण जल मगन हो जाएंगे और पृथ्वी से जीवन समाप्त हो जाएगी क्योंकि वह रात ब्रह्मा जी की निंद्रा की रात होगी।


तब वहां पर मेरी प्रेरणा से एक बड़ी नौका आएगी उसमें आप, आपकी पत्नी सप्त ऋषि सूक्ष्मजीव और पशु पक्षी के एक एक जोड़ें, बीज इत्यादि रख लेना और बैठ जाना जब तुम्हारी नौका प्रचंड आंधी में डगमगायेगी तब मैं वहां अपने इस मत्स्य रूप में आऊंगा तुम लोग वासुकी नाग को मेरे सिंग (मत्स्य) से बांध देना जब तक ब्रह्मा जी की रात रहेगी तब तक मैं तुम्हारी नौका को खींचते रहूंगा जैसे ही ब्रह्मा जी की रात निकल जाएगी और ब्रह्मा जी की सुबह होगी में तुम्हारी नौका को सुमेरू पर्वत पर ले जाऊंगा और तुम वहा से नवीन जीवन प्रारम्भ करना और तुम पृथ्वी पर मनु के रूप में नई संस्कृति लेकर आओगे और एक मन्वंतर तक सृष्टि का संचालन करोगे।
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ॐ नमो नारायण 💙🕉💛🐚🌈🌷🔆❤️🕉🌀📿🌈💖
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Make Sanatan Great Again 🚩🕉️🙏

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

Receive Energized Rudraksh At Home For Free

इस महाशिवरात्रि पर पहली बार सद्गुरु जी द्वारा रुद्राक्ष दीक्षा दी जा रही है। सद्गुरु धरती के हर इंसान को इन प्राण-प्रतिष्ठित रुद्राक्षों के रूप में, अध्यात्म की कम से कम एक बूंद भेंट कर रहे हैं। यह आदियोगी शिव की कृपा पाने का अनूठा अवसर है।

आज ही रुद्राक्ष दीक्षा सामग्री  के लिए पंजीकरण करें, यह पूरी तरह निःशुल्क है।


रुद्राक्ष दीक्षा पैकेज में निम्न प्रसाद शामिल हैं, जो पूरी तरह निःशुल्क है।

1. रुद्राक्ष
रुद्र का अर्थ है शिव, अक्ष का अर्थ है अश्रु।  रुद्राक्ष शिव के आंसू हैं। मान्यता है कि एक बार, शिव लंबे समय तक ध्यान में बैठे रहे।  वे परम आनंद में निश्चल होकर कई वर्षों तक बैठे रहे।  ऐसा लगता था कि वे सांस भी नहीं ले रहे हैं, वे जीवित हैं इसका एक ही संकेत था - परमानंद के आँसू जो उसकी आँखों से टपक रहे थे।  ये अश्रु पृथ्वी पर गिर गए और रुद्राक्ष बन गया।

अभय सूत्र - यह प्राण-प्रतिष्ठित धागा कलाई पर बांधा जाता है (महिलाओ की बाई, पुरुषों की दाईं)। इसे कम से कम 40 दिन पहनना चाहिए। यह डर दूर और महत्वाकांक्षाएं पूरी करता है। इसे गाँठ खोलकर या जलाकर उतारना चाहिए (न कि काटकर) और फिर गाड़ना चाहिए।
 

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ईशा विभूति – ध्यानलिग में प्राण- प्रतिष्ठित यह विभूति लगाने से आध्यात्मिक ग्रहणशीलता बढ़ती है।

आदियोगी शिव की तस्वीर - पहले योगी जिन्होंने योग विज्ञान की दीक्षा दी।

अधिक जानकारी के लिए आप ईशा आश्रम की आधिकारिक वेबसाइट पर जाए.

नोट- हमारे द्वारा दी गई जानकारी ईशा फाउंडेशन की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है कृपया आप अपने विवेक से काम लेवे।
 आधिकारिक वेबसाइट registration Link

https://mahashivarathri.org/en/rudraksha-diksha/registration

For the very first time this Mahashivratri, Sadhguru has opened up the possibility of receiving Rudraksha Diksha. Receive a Rudraksha powerfully energized by Sadhguru and other materials which would support the seeker in sadhana. Register today! 

Rudraksha Diksha 

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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

कौन है ऋषि-मुनि

भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे और वे अपने ज्ञान और साधना से हमेशा ही लोगों और समाज का कल्याण करते आये हैं। आज भी वनों में या किसी तीर्थ स्थल पर हमें कई साधु देखने को मिल जाते हैं। धर्म कर्म में हमेशा लीन रहने वाले इस समाज के लोगों को ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी आदि नामों से पुकारते हैं। ये हमेशा तपस्या, साधना, मनन के द्वारा अपने ज्ञान को परिमार्जित करते हैं। ये प्रायः भौतिक सुखों का त्याग करते हैं हालाँकि कुछ ऋषियों ने गृहस्थ जीवन भी बिताया है।

भारत हमेशा से ही ऋषियों का देश रहा है। हमारे समाज में ऋषि परंपरा का विशेष महत्त्व रहा है। आज भी हमारे समाज और परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज माने जाते हैं।

ऋषि वैदिक परंपरा से लिया गया शब्द है जिसे श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने वाले लोगों के लिए प्रयोग किया गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है वैसे व्यक्ति जो अपने विशिष्ट और विलक्षण एकाग्रता के बल पर वैदिक परंपरा का अध्ययन किये और विलक्षण शब्दों के दर्शन किये और उनके गूढ़ अर्थों को जाना और प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उस ज्ञान को लिखकर प्रकट किये ऋषि कहलाये। ऋषियों के लिए इसी लिए कहा गया है "ऋषि: तु मन्त्र द्रष्टारा : न तु कर्तार : अर्थात ऋषि मंत्र को देखने वाले हैं न कि उस मन्त्र की रचना करने वाले। हालाँकि कुछ स्थानों पर ऋषियों को वैदिक ऋचाओं की रचना करने वाले के रूप में भी व्यक्त किया गया है।


PC zacktic_artz_/instagram

ऋषि शब्द का अर्थ:-


ऋषि शब्द "ऋष" मूल से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ देखना होता है। इसके अतिरिक्त ऋषियों के प्रकाशित कृत्य को आर्ष कहा जाता है जो इसी मूल शब्द की उत्पत्ति है। दृष्टि यानि नज़र भी ऋष से ही उत्पन्न हुआ है। प्राचीन ऋषियों को युग द्रष्टा माना जाता था और माना जाता था कि वे अपने आत्मज्ञान का दर्शन कर लिए हैं। ऋषियों के सम्बन्ध में मान्यता थी कि वे अपने योग से परमात्मा को उपलब्ध हो जाते थे और जड़ के साथ साथ चैतन्य को भी देखने में समर्थ होते थे। वे भौतिक पदार्थ के साथ साथ उसके पीछे छिपी ऊर्जा को भी देखने में सक्षम होते थे।

ऋषियों के प्रकार:-

ऋषि वैदिक संस्कृत भाषा से उत्पन्न शब्द माना जाता है। अतः यह शब्द वैदिक परंपरा का बोध कराता है जिसमे एक ऋषि को सर्वोच्च माना जाता है अर्थात ऋषि का स्थान तपस्वी और योगी से श्रेष्ठ होता है। ऋषि सात प्रकार के होते हैं ब्रह्मऋषि, देवर्षि, महर्षि, परमऋषि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि।


सप्त ऋषि


पुराणों में सप्त ऋषियों का केतु, पुलह, पुलत्स्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ठ और भृगु का वर्णन है। इसी तरह अन्य स्थान पर सप्त ऋषियों की एक अन्य सूचि मिलती है जिसमे अत्रि, भृगु, कौत्स, वशिष्ठ, गौतम, कश्यप और अंगिरस तथा दूसरी में कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज को सप्त ऋषि कहा गया है।


मुनि किसे कहते हैं


मुनि भी एक तरह के ऋषि ही होते थे किन्तु उनमें राग द्वेष का आभाव होता था। भगवत गीता में मुनियों के बारे में कहा गया है जिनका चित्त दुःख से उद्विग्न नहीं होता, जो सुख की इच्छा नहीं करते और जो राग, भय और क्रोध से रहित हैं, ऐसे निस्चल बुद्धि वाले संत मुनि कहलाते हैं।

मुनि शब्द मौनी यानि शांत या न बोलने वाले से निकला है। ऐसे ऋषि जो एक विशेष अवधि के लिए मौन या बहुत कम बोलने का शपथ लेते थे उन्हीं मुनि कहा जाता था। प्राचीन काल में मौन को एक साधना या तपस्या के रूप में माना गया है। बहुत से ऋषि इस साधना को करते थे और मौन रहते थे। ऐसे ऋषियों के लिए ही मुनि शब्द का प्रयोग होता है। कई बार बहुत कम बोलने वाले ऋषियों के लिए भी मुनि शब्द का प्रयोग होता था। कुछ ऐसे ऋषियों के लिए भी मुनि शब्द का प्रयोग हुआ है जो हमेशा ईश्वर का जाप करते थे और नारायण का ध्यान करते थे जैसे नारद मुनि।