Quotes from Mahadev Part 1
महादेव :
दुखो से उमड़ते हुए उस मायावी संसार से मै न जाने कब से दूर हो चूका हु और सदैव दूर ही रहूँगा ।
महर्षि दधिची :
हम सब के जीवन का अंत शेष ये भस्म ही तो है । भस्म तो हमे कभी भूलने नहीं देती के इस संसार में सब कुछ नश्वर है , स्वयं ये संसार भी , ऐसे संसार से फिर ये मोह कैसा ? और ये बीज है रुद्राक्ष
के, बीज कभी नहीं मुरझाते , कभी नहीं मरते , वो तो जीवनदायी है आत्मा कि तरह , इस सत्य से हम कभी दूर न हो इसलिए हम रुद्राक्ष बीज कि माला धारण करते है | यही हम शिव भक्तो कि पहचान है ।
महादेव :
मै तो वैरागी हु , न सम्मान का मोह , न अपमान का भय , न शत्रू , न मित्र , न कोई अपना न पराया , न इस संसार से लेना न देना , पर जब कभी धर्म के नाम पे किया जाने वाला आडम्बर , पक्षपात का आधार बनेगा मै उसका विनाश अवश्य करूँगा |
महादेव :
दांपत्य सांसारिक मोह से जुड़ने का एक माध्यम है । एक वैरागी के जीवन में इसका कोई अर्थ नहीं । प्रेम का अर्थ अवश्य है , मेरे भक्त ,मेरे गण , इनसे मेरा संबंध प्रेम का ही तो है । भले ही वो प्रेत हो, पिशाच हो , पशु हो या फिर मनुष्य । पर जिस प्रेम कि ओर आप संकेत कर रहे है वो तो स्वार्थ और अहम् से परिपूर्ण होता है । और मेरे साधना का ध्येय उसी स्वार्थ और उसी अहम् का त्याग है । मै जानता हु विष्णु मुझे विवाह के बंधन में बाँधने का प्रयत्न कर रहे है पर मै हर बंधन से मुक्त हु,
संतुष्ट हु, संपूर्ण हु ।
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