भोसलें एक मराठी क्षत्रिय हिन्दू राजपूत की एक जाति हैं. शिवाजी के पिता भी काफी तेज और शूरवीर थे. शिवाजी महाराज के लालन-पालन और शिक्षा में उनके माता और पिता का बहुत ही ज्यादा प्रभाव रहा हैं. उनके माता और पिता शिवाजी को बचपन से ही युद्ध की कहानियां तथा उस युग की घटनाओं को बताती थीं. खासकर उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत की प्रमुख कहानियाँ सुनाती थी जिन्हें सुनकर शिवाजी के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा था. शिवाजी महाराज की शादी सन 14 मई 1640 में सईबाई निम्बलाकर के साथ हुई थीं.
शिवाजी महाराज का सैनिक वर्चस्व :
सन 1640 और 1641 के समय बीजापुर महाराष्ट्र पर विदेशियों और राजाओं के आक्रमण हो रहे थें. शिवाजी महाराज मावलों को बीजापुर के विरुद्ध इकट्ठा करने लगे. मावल राज्य में सभी जाति के लोग निवास करते हैं, बाद में शिवाजी महाराज ने इन मावलो को एक साथ आपस में मिलाया और मावला नाम दिया. इन मावलों ने कई सारे दुर्ग और महलों का निर्माण करवाया था.
इन मावलो ने शिवाजी महाराज का बहुत भी ज्यादा साथ दिया. बीजापुर उस समय आपसी संघर्ष और मुगलों के युद्ध से परेशान था जिस कारण उस समय के बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गो से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों के हाथों में सौप दी दिया था.
अचानक बीजापुर के सुल्तान बीमार पड़ गए थे और इसी का फायदा देखकर शिवाजी महाराज ने अपना अधिकार जमा लिया था. शिवाजी ने बीजापुर के दुर्गों को हथियाने की नीति अपनायी और पहला दुर्ग तोरण का दुर्ग को अपने कब्जे में ले लिया था.
शिवाजी महाराज का किलों पर अधिकार :
तोरण का दुर्ग पूना (पुणे) में हैं. शिवाजी महाराज ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना एक दूत भेजकर खबर भिजवाई की अगर आपको किला चाहिए तो अच्छी रकम देनी होगी, किले के साथ-साथ उनका क्षेत्र भी उनको सौपं दिया जायेगा. शिवाजी महाराज इतने तेज और चालाक थे की आदिलशाह के दरबारियों को पहले से ही खरीद लिया था.
शिवाजी जी के साम्राज्य विस्तार नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली थी तब वह देखते रह गया. उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने के लिये कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया था और लगान देना भी बंद कर दिया था.
वे 1647 ई. तक चाकन से लेकर निरा तक के भू-भाग के भी मालिक बन चुके थें. अब शिवाजी महाराज ने पहाड़ी इलाकों से मैदानी इलाकों की और चलना शुरू कर दिया था. शिवाजी जी ने कोंकण और कोंकण के 9 अन्य दुर्गों पर अपना अधिकार जमा लिया था. शिवाजी महाराज को कई देशी और कई विदेशियों राजाओं के साथ-साथ युद्ध करना पड़ा था और सफल भी हुए थे.
शाहजी की बंदी और युद्ध बंद करने की घोषणा :
बीजापुर के सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही गुस्से में था. सुल्तान ने शिवाजी महाराज के पिता को बंदी बनाने का आदेश दिया था. शाहजी उनके पिता उस समय कर्नाटक राज्य में थें और दुर्भाग्य से शिवाजी महाराज के पिता को सुल्तान के कुछ गुप्तचरों ने बंदी बना लिया था. उनके पिता को एक शर्त पर रिहा किया गया कि शिवाजी महाराज बीजापुर के किले पर आक्रमण नहीं करेगा. पिताजी की रिहाई के लिए शिवाजी महाराज ने भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए 5 सालों तक कोई युद्ध नहीं किया और तब शिवाजी अपनी विशाल सेना को मजबूत करने में लगे रहे.
शिवाजी महाराज का राज्य विस्तार :
शाहजी की रिहा के समय जो शर्ते लागू की थी उन शर्तो में शिवाजी ने पालन तो किया लेकिन बीजापुर के साउथ के इलाकों में अपनी शक्ति को बढ़ाने में ध्यान लगा दिया था पर इस में जावली नामक राज्य बीच में रोड़ा बना हुआ था. उस समय यह राज्य वर्तमान में सतारा महाराष्ट्र के उत्तर और वेस्ट के कृष्णा नदी के पास था. कुछ समय बाद शिवाजी ने जावली पर युद्ध किया और जावली के राजा के बेटों ने शिवाजी के साथ युद्ध किया और शिवाजी ने दोनों बेटों को बंदी बना लिया था और किले की सारी संपति को अपने कब्जे में ले लिया था और इसी बीच कई मावल शिवाजियो के साथ मिल गए थे.
शिवाजी महाराज का मुगलों से पहला मुकाबला :
मुगलों के शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत के बाद साउथ भारत की तरफ गया. उसे शिवाजी के बारे में पहले से ही मालूम था. औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने मामा शाइस्ता खान को सूबेदार बना दिया था. शाइस्ता खान अपने 150,000 सैनिकों को लेकर पुणे पहुँच गया और उसने 3 साल तक लूटपाट की.
एक बार शिवाजी ने अपने 350 मावलो के साथ उनपर हमला कर दिया था तब शाइस्ता खान अपनी जान निकालकर भाग खड़ा हुआ और शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 4 उँगलियाँ खोनी पड़ी. इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के पुत्र और उनके 40 सैनिकों का वध कर दिया था. उसके बाद औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया था.
जब हुई सूरत में लूट :
इस जीत से शिवाजी की शक्ति ओर मजबूत हो गयी थीं. लेकिन 6 साल बाद शाइस्ताखान ने अपने 15,000 सैनिको के साथ मिलकर राजा शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया था. बाद में शिवाजी ने इस तबाही को पूरा करने के लिये मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी. सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था. शिवाजी ने 4 हजार सैनिको के साथ सूरत के व्यापारियों को लुटा लेकिन उन्होंने किसी भी आम आदमी को अपनी लुट का शिकार नहीं बनाया.
शिवाजी महाराज का किलों पर अधिकार :
तोरण का दुर्ग पूना (पुणे) में हैं. शिवाजी महाराज ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना एक दूत भेजकर खबर भिजवाई की अगर आपको किला चाहिए तो अच्छी रकम देनी होगी, किले के साथ-साथ उनका क्षेत्र भी उनको सौपं दिया जायेगा. शिवाजी महाराज इतने तेज और चालाक थे की आदिलशाह के दरबारियों को पहले से ही खरीद लिया था.
शिवाजी जी के साम्राज्य विस्तार नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली थी तब वह देखते रह गया. उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने के लिये कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया था और लगान देना भी बंद कर दिया था.
वे 1647 ई. तक चाकन से लेकर निरा तक के भू-भाग के भी मालिक बन चुके थें. अब शिवाजी महाराज ने पहाड़ी इलाकों से मैदानी इलाकों की और चलना शुरू कर दिया था. शिवाजी जी ने कोंकण और कोंकण के 9 अन्य दुर्गों पर अपना अधिकार जमा लिया था. शिवाजी महाराज को कई देशी और कई विदेशियों राजाओं के साथ-साथ युद्ध करना पड़ा था और सफल भी हुए थे.
शाहजी की बंदी और युद्ध बंद करने की घोषणा :
बीजापुर के सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही गुस्से में था. सुल्तान ने शिवाजी महाराज के पिता को बंदी बनाने का आदेश दिया था. शाहजी उनके पिता उस समय कर्नाटक राज्य में थें और दुर्भाग्य से शिवाजी महाराज के पिता को सुल्तान के कुछ गुप्तचरों ने बंदी बना लिया था. उनके पिता को एक शर्त पर रिहा किया गया कि शिवाजी महाराज बीजापुर के किले पर आक्रमण नहीं करेगा. पिताजी की रिहाई के लिए शिवाजी महाराज ने भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए 5 सालों तक कोई युद्ध नहीं किया और तब शिवाजी अपनी विशाल सेना को मजबूत करने में लगे रहे.
शिवाजी महाराज का राज्य विस्तार :
शाहजी की रिहा के समय जो शर्ते लागू की थी उन शर्तो में शिवाजी ने पालन तो किया लेकिन बीजापुर के साउथ के इलाकों में अपनी शक्ति को बढ़ाने में ध्यान लगा दिया था पर इस में जावली नामक राज्य बीच में रोड़ा बना हुआ था. उस समय यह राज्य वर्तमान में सतारा महाराष्ट्र के उत्तर और वेस्ट के कृष्णा नदी के पास था. कुछ समय बाद शिवाजी ने जावली पर युद्ध किया और जावली के राजा के बेटों ने शिवाजी के साथ युद्ध किया और शिवाजी ने दोनों बेटों को बंदी बना लिया था और किले की सारी संपति को अपने कब्जे में ले लिया था और इसी बीच कई मावल शिवाजियो के साथ मिल गए थे.
शिवाजी महाराज का मुगलों से पहला मुकाबला :
मुगलों के शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत के बाद साउथ भारत की तरफ गया. उसे शिवाजी के बारे में पहले से ही मालूम था. औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने मामा शाइस्ता खान को सूबेदार बना दिया था. शाइस्ता खान अपने 150,000 सैनिकों को लेकर पुणे पहुँच गया और उसने 3 साल तक लूटपाट की.
एक बार शिवाजी ने अपने 350 मावलो के साथ उनपर हमला कर दिया था तब शाइस्ता खान अपनी जान निकालकर भाग खड़ा हुआ और शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 4 उँगलियाँ खोनी पड़ी. इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के पुत्र और उनके 40 सैनिकों का वध कर दिया था. उसके बाद औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया था.
जब हुई सूरत में लूट :
इस जीत से शिवाजी की शक्ति ओर मजबूत हो गयी थीं. लेकिन 6 साल बाद शाइस्ताखान ने अपने 15,000 सैनिको के साथ मिलकर राजा शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया था. बाद में शिवाजी ने इस तबाही को पूरा करने के लिये मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी. सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था. शिवाजी ने 4 हजार सैनिको के साथ सूरत के व्यापारियों को लुटा लेकिन उन्होंने किसी भी आम आदमी को अपनी लुट का शिकार नहीं बनाया.
आगरा में आमन्त्रित और पलायन :
शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया है. इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोष दरबार पर निकाला और औरंगजेब पर छल का आरोप लगाया. औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया था और शिवाजी पर 500 सैनिको का पहरा लगा दिया. कुछ ही दिनों बाद 1666 को शिवाजी महाराज को जान से मारने का औरंगजेब ने इरादा बनाया था लेकिन अपने बेजोड़ साहस और युक्ति के साथ शिवाजी और संभाजी दोनों कैद से भागने में सफल हो गये.
संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गये थे और बाद में सकुशल राजगड आ गये. औरंगजेब ने जयसिंह पर शक आया और उसने विष देकर उसकी हत्या करा दी. जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद शिवाजी ने मुगलों से दूसरी बार संधि की. 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लुटा था, यहाँ से शिवाजी को 132 लाख की संपति हाथ लगी और शिवाजी ने मुगलों को सूरत में फिर से हराया था.
शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक :
सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरंदर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे. बालाजी राव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से मिलते हुए प्रमाण भेजे थें. इस कार्यक्रम में विदेशी व्यापारियों और विभिन्न राज्यों के दूतों को इस समारोह में बुलाया था. शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की और काशी के पंडित भट्ट को इसमें समारोह में विशेष रूप से बुलाया गया था. आज भले ही हम सब के बीच शिवाजी महाराज का इतिहास ही रह गया हो लेकिन उनक जीवन चरित्र आज भी हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है. अगर कुछ बड़ा करने की जिद हो तो उसे पाना आसान हो जाता है. शिवाजी महाराज की तरह हमें भी अपना जीवन सामान्य जीने के बदले महान बनाना चाहिए और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे इस समाज का भला हो सके और हमारा देश उन्नति कर सके. शिवाजी महाराज की जीवनी पढने के लिए आपका धन्यवाद.
शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया है. इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोष दरबार पर निकाला और औरंगजेब पर छल का आरोप लगाया. औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया था और शिवाजी पर 500 सैनिको का पहरा लगा दिया. कुछ ही दिनों बाद 1666 को शिवाजी महाराज को जान से मारने का औरंगजेब ने इरादा बनाया था लेकिन अपने बेजोड़ साहस और युक्ति के साथ शिवाजी और संभाजी दोनों कैद से भागने में सफल हो गये.
संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गये थे और बाद में सकुशल राजगड आ गये. औरंगजेब ने जयसिंह पर शक आया और उसने विष देकर उसकी हत्या करा दी. जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद शिवाजी ने मुगलों से दूसरी बार संधि की. 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लुटा था, यहाँ से शिवाजी को 132 लाख की संपति हाथ लगी और शिवाजी ने मुगलों को सूरत में फिर से हराया था.
शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक :
सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरंदर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे. बालाजी राव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से मिलते हुए प्रमाण भेजे थें. इस कार्यक्रम में विदेशी व्यापारियों और विभिन्न राज्यों के दूतों को इस समारोह में बुलाया था. शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि धारण की और काशी के पंडित भट्ट को इसमें समारोह में विशेष रूप से बुलाया गया था. आज भले ही हम सब के बीच शिवाजी महाराज का इतिहास ही रह गया हो लेकिन उनक जीवन चरित्र आज भी हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है. अगर कुछ बड़ा करने की जिद हो तो उसे पाना आसान हो जाता है. शिवाजी महाराज की तरह हमें भी अपना जीवन सामान्य जीने के बदले महान बनाना चाहिए और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे इस समाज का भला हो सके और हमारा देश उन्नति कर सके. शिवाजी महाराज की जीवनी पढने के लिए आपका धन्यवाद.
।। जय भवानी जय शिवाजी ।।
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