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बुधवार, 6 जनवरी 2021

भगवान शिव और तांडव नृत्य

तांडव नृत्य अर्थात सृष्टि के संहार का नृत्य ऐसा नृत्य जो सृष्टि की लयात्मक व्यवस्था को अव्यवस्थित कर उसे प्रलय में बदल देता है। तांडव नृत्य अक्सर भगवान शिव से ही जोड़ा जाता रहा है, कहा जाता है कि जब सृष्टि के संहार की बारी आती है तो शिव जाग्रत हो उठते हैं और वो महाकाली के साथ विध्वंस का ऐसा नृत्य करते हैं जिससे सृष्टि का संहार हो जाता है। परंतु क्या तांडव नृत्य सिर्फ सृष्टि के संहार से ही जुड़ा है या इसका कोई और भी अर्थ है। तांडव का अर्थ क्या है तांडव शब्द तंदुल शब्द से बना है जिसका अर्थ है उछलना। संपूर्ण उर्जा के साथ शरीर को उछालने की क्रिया को तांडव कहते हैं । इस नृत्य में वीर और वीभत्स रस का प्रयोग किया जाता है । आम तौर पर सृष्टि में दो प्रकार की स्थिति होती है । लयात्मक स्थिति और प्रलयात्मक स्थिति।

परम पुरुष और उसकी प्रकृति हमारी सृष्टि प्रकृति और पुरुष से मिल कर बनी है। पुरुष को कई ईश्वरीय सत्ताओं से जोड़ा जाता रहा है। भगवान सदाशिव ही परम पुरुष हैं और माता पार्वती उनकी प्रकृति हैं जिनके साथ मिलकर भगवान शिव सृष्टि की रचना , पालन और संहार करते हैं।

Picture Credit The_Lion_Army/Instagram

परम पुरुष का तांडव और प्रकृति का लास्य नृत्य

सृष्टि दो प्रकार के नृत्यों से संचालित होती हैं, जब प्रकृति अपने लय में होती हैं तो माता पार्वती के पास सृष्टि के संचालन का दायित्व होता है। लय में जब मां पार्वती या प्रकृति होती हैं तो से लास्य नृत्य होता है । परंतु जब लयात्मक प्रकृति में कोई व्यवधान होता है तो परम पुरुष का हस्तक्षेप होता है और प्रकृति लास्य नृत्य समाप्त कर देती हैं और परमु पुरुष शिव का प्रलयात्मक नृत्य शुरु होता है।

भगवान शिव के तांडव तांडव नृत्य का शास्त्रो में वर्णन देखा जा सकता है। भगवान शिव जब कभी भी विनाश का कार्य शुरु करते हैं उसके बाद वो तांडव नृत्य जरुर करते हैं। दरअसल अगर सृजन एक लीला कार्य है तो प्रलय भी भगवान की एक लीला ही है, और जब लीला अर्थात खेल है यह सारा कार्य तो इसमें संगीत और नृत्य भी होगा। भगवान शिव संहार करने के बाद क्रोध को नियंत्रित नहीं कर पाते और उनका पूरा शरीर अतिरिक्त उर्जा से उछलने लगता है। उर्जा का यही रूपांतरण तांडव कहलाता है।

शिव ने कब कब तांडव नृत्य किया शास्त्रों के मुताबिक शिव हमेशा प्रलय के बाद तांडव करते हैं।

शास्त्रो में पहले तांडव नृत्य का वर्णन- शास्त्रों के अनुसार जब उनकी पहली पत्नी माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था तब भगवान शिव ने अपनी पत्नी, माता सती का शव अपने कंधे पर रख कर सृष्टि का विनाश करने के लिए तांडव नृत्य शुरु कर दिया था। इस नृत्य को खत्म कराने के लिए और भगवान शिव का माता सती के पार्थिव शरीर के प्रति मोह भंग कराने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये थे। जहां जहां माता सती के अंग गिरे वहां वहां आज भी शक्तिपीठे हैं।

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