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बुधवार, 26 मई 2021

माँ आदि पराशक्ति दिव्य शुद्ध शाश्वत चेतना

माँ आदि पराशक्ति दिव्य शुद्ध शाश्वत चेतना यानी शून्य बिंदु, दिव्य शून्य ऊर्जा के रूप में प्रकट हुई, जो तब खुद को प्रकृति (सार्वभौमिक प्रकृति) के रूप में व्यक्त करती है। इसलिए माँ आदि पराशक्ति परम प्रकृति है।

देवी ललिता त्रिपुर सुंदरी, शक्ति की देवी, को उनका सगुण स्वरूप (प्रकट रूप) माना जाता है।  अर्थात्, ललिता त्रिपुर सुंदरी देवी का सबसे सच्चा भौतिक रूप है, जिसमें तीन गुण (सत्व, रज, या तमस) हैं।  हालाँकि, देवी माँ आदि पराशक्ति को भी बिना रूप (परम आत्मान) के वास्तव में सर्वोच्च आत्मा माना जाता है।  वह महान देवी हैं, और इसलिए अन्य सभी देवी-देवताओं की स्रोत हैं।  वह सर्वोच्च है और शक्तिवाद में "पूर्ण सत्य" के रूप में मानी जाती है।

माँ आदि पराशक्ति की उत्पत्ति 

सनातन धर्म के अनुसार जब कुछ नहीं था अर्थात न तो नभ, थल,जल, जीव, निर्जीव अर्थात सब कुछ शून्य था चारो ओर सिर्फ अंधकार था तब अचानक एक (ज्योति) प्रकाश का उदय हुआ, वो दिव्य प्रकाश कौन था क्या था कोई नही जानता है, तो उस प्रकाश ने माँ आदि पराशक्ति का रूप धारण कर लिया।  उनकी तीन आंखें थीं, त्रिशूल, ढाल, गदा, धनुष, तीर, चक्र, लंबी तलवार और एक हाथ अभय मुद्रा (भक्तों को आश्रीवाद देते हुए) के रूप में। इससे पहले कि वह अपनी आँखें खोलती, वह थोड़ी मुस्कुराई और मुस्कान से ब्रह्मांड में प्रकाश संचार हुआ। माता ने जब इधर-उधर देखा लेकिन कुछ नहीं था संसार मे सब शून्य था। ब्रह्मांड में व्याप्त शून्यता व अंधकार को दूर करने के लिए माता परा आदिशक्ति ने कुष्मांडा का रूप धारण कर लिया।  वह एक शेरनी पर बैठी थी।  जब माँ ने अपने दिव्य नेत्र एक एक कर के खोले तो क्रमश, महालक्ष्मी, महासरस्वती व महाकाली का प्रकाट्य हुआ।



विज्ञान के अनुसार, ऊर्जा का सिद्धान्त

ऊर्जा बुनियादी इकाई है जो सभी का आधार है, क्योंकि ऊर्जा को आधार की आवश्यकता नहीं होती है।  ब्रह्मांड के विनाश के बाद भी ऊर्जा मौजूद रहेगी।  विज्ञान ने इसे ब्रह्मांड के विस्तार और निर्माण के लिए जिम्मेदार "डार्क एनर्जी" नाम दिया है।  जो ऊर्जा विनाश के बाद भी और निर्माण से पहले भी मौजूद है, उसे शून्य ऊर्जा या पवित्र ऊर्जा कहा जाता है।

देवी भागवत पुराण, चार वेद व शास्त्र के अनुसार देखे तो माँ काली अंधकार को दूर करने वाली देवी है अर्थात माँ काली को डार्क एनर्जी मानते हैं जो समय के साथ-साथ पूरे ब्रह्मांड को भंग कर देती है। ललिता ब्रह्मांड को एक ब्रह्मांडीय अंडे के रूप में जन्म देती है जिसने ब्रह्मांड को प्रकट किया।  अंततः आदि शक्ति स्वयं शून्य ऊर्जा है जो ब्रह्मांड के विनाश के बाद भी और इसके निर्माण से पहले भी मौजूद है।

वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में साक्ष्य

सनातन धर्म में देवी शक्ति अर्थात स्त्री पहलू के प्रति श्रद्धा का सबसे पहला प्रमाण ऋग्वेद के अध्याय 10.125 में प्रकट होता है, जिसे देवी सूक्तम भजन भी कहा जाता है।

मैं ब्रह्मस्वरुपा रुद्र, वसु, आदित्य और विश्वदेवता के रुप में विचरण करती हूँ, अर्थात् मैं ही उन सभी रुपों में विध्यमान हो रही हूँ । मैं ही ब्रह्मरुप से मित्र और वरुण दोनों को धारण करती हूँ । मैं ही इन्द्र और अग्नि का आधार हूँ । मैं ही दोनो अश्विनी-कुमारों का भी धारण-पोषण करती हूँ।। ॥ 1 (१) ॥


मैं ही शत्रुनाशक, कामादि दोष-निवर्तक, परमाह्लाददायी, यज्ञगत सोम, चन्द्रमा, मन अथवा शिव का भरण पोषण करती हूँ। मैं ही त्वष्टा, पूषा और भग को भी धारण करती हूँ, जो यजमान यज्ञ में सोमाभिषव के द्वारा देवताओं को तृप्त करने के लिये हाथ में हविष्य लेकर हवन आदि करता है, उसे लोक-परलोक में सुखकारी फल देने वाली मैं ही हूँ ॥ 2 ॥


मैं ही राष्ट्री अर्थात् सम्पूर्ण जगत् की ईश्र्वरी हूँ। मैं उपासकों को उनके अभीष्ट वसु-धन प्राप्त कराने वाली हूँ।  जिज्ञासुओं के साक्षात् कर्तव्य परब्रह्म को अपनी आत्मा के रुप में मैंने अनुभव कर लिया है। जिनके लिये यज्ञ किये जाते हैं, उनमें मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ।  सम्पूर्ण प्रपञ्च के रुप में मैं ही अनेक प्रकार से होकर विराजमान हूँ। सभी प्राणियों के शरीर में जीवनरुप में मैं ही अपने-आपको प्रविष्ट कर रही हूँ। अलग-अलग देशो, काल, वस्तु और व्यक्तियों में जो कुछ हो रहा है या किया जा रहा है, वह सब मुझमें मेरे लिये ही किया जा रहा है । सम्पूर्ण ब्रह्मांड के रुप में अवस्थित होने के कारण जो कोई जो कुछ भी करता है, वह सब मैं ही हूँ ॥ 3 ॥

जो कोई भोग भोगता है, वह मुझ भोक्त्री की शक्ति से ही भोगता है। जो देखता है, जो श्वासोच्छ्वास-रुप व्यापार करता है और जो कही हुई सुनता है, वह भी मुझसे ही है। जो इस प्रकार अन्तर्यामी से स्थित मुझे नहीं जानते, वे अज्ञानी दीन, हीन, क्षीण हो जाते हैं। मेरे प्यारे सखा ! मेरी बात सुनो, मैं तुम्हारे लिये उस ब्रह्मात्मक वस्तु का उपदेश करती हूँ, जो श्रद्धा-साधन से उपलब्ध होती है। ।। 4 ।।

मैं स्वयं ही ब्रह्मात्मक वस्तु का उपदेश करती हूँ। देवताओं और मनुष्यों ने भी इसी का सेवन किया है।  मैं स्वयं ही ब्रह्मा हूँ । मैं जिसकी रक्षा करना चाहती हूँ, उसे सर्वश्रेष्ठ बना देती हूँ, मैं चाहूँ तो उसे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा भी बना  दूँ, और उसे बृहस्पति के समान सुमेधा बना दूँ। मैं स्वयं अपने स्वरुप ब्रह्मभिन्न आत्मा का गान कर रही हूँ ॥ 5 ॥

मैं ही ब्रह्मज्ञानियों के द्वेषी हिंसारत त्रिपुरवासी त्रिगुणाभिमानी अहंकार व असुर का वध करने के लिये संहारकारी रुद्र के धनुष पर ज्या (प्रत्यञ्चा) चढाती हूँ। मैं ही अपने जिज्ञासु स्तोताओं के विरोधी शत्रुओं के साथ संग्राम करके उन्हें पराजित करती हूँ। मैं ही स्वर्ग और पृथ्वी में अन्तर्यामी रुप से समाहित हूँ ॥ 6 ॥

इस विश्व के शिरोभाग पर विराजमान द्युलोक (स्वर्गलोक) अथवा आदित्यरुप पिता का प्रसव मैं ही करती रहती हूँ। उस कारण मैं ही तन्तुओं में पटके समान आकाशादि सम्पूर्ण कार्य दीख रहा है । दिव्य कारण-वारिरुप समुद्र, जिसमें सम्पूर्ण प्राणियों एवं पदार्थों का उदय-विलय होता रहता है, वह ब्रह्मचैतन्य ही मेरा निवास स्थान है। यही कारण है कि मैं सम्पूर्ण भूतों में अनुप्रविष्ट होकर रहती हूँ और अपने कारण भूत मायात्मक स्वशरीर से सम्पूर्ण दृश्य कार्य का स्पर्श करती हूँ ॥ 7 ॥

वायु किसी दूसरे से प्रेरित न होने पर भी स्वयं प्रवाहित होता है, उसी प्रकार मैं ही किसी दूसरे के द्वारा प्रेरित और अधिष्ठित न होने पर भी स्वयं ही कारण रुप से सम्पूर्ण भूतरुप कार्यों का आरम्भ करती हूँ। मैं आकाश से भी परे हूँ और इस पृथ्वी से भी परे हूँ। अर्थात मैं सम्पूर्ण विकारों से परे, असङ्ग, उदासीन, कूटस्थ ब्रह्मचैतन्य हूँ।  अपनी महिमा से सम्पूर्ण जगत् के रुप में मैं ही बढ़ोतरी कर रही हूँ, विराजमान रह रही हूँ ॥ 8 ॥

सनातन और अनंत चेतना मैं हूं, यह मेरी महानता है जो हर चीज में निवास करती है।

- देवी सूक्त, ऋग्वेद 10.125.3 - 10.125.8



मैं प्रकट देवत्व, अव्यक्त देवत्व और पारलौकिक दिव्यता हूँ।  मैं ब्रह्मा, विष्णु और शिव, साथ ही सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती हूं।  मैं सूर्य हूं और मैं ही तारे हूं, और मैं चंद्रमा भी हूं।  मैं सभी पशु और पक्षी हूँ, और मैं निर्वासित और चारो ओर भी हूँ।  मैं भयानक कर्मों व उत्कृष्ट कर्मों में मैं ही विद्यमान हूँ। मैं स्त्री हूँ, ओर मैं ही शिव के रूप में पुरुष हूँ।।

– देवी-भागवत पुराण

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।। जय माँ आदि पराशक्ति ।। 
|| जय सनातन धर्म की || 🕉️🚩

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