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मंगलवार, 2 जून 2020

भगवान शिव का जन्म

भगवान शिव इस संसार के देवाधिदेव है क्यो की जब इस संसार मे कोई भी नही था तब भगवान शिव यहाँ विद्यमान थे और जब इस संसार में कोई भी नही रहेगा तब भी परम् पिता भगवान शिव इस संसार मे रहेंगे। इस सृष्टि के निर्माण से पहले भगवान शिव यहाँ मौजूद थे और इस संसार की प्रलय के बाद भी भगवान शिव ही यहाँ विद्यमान रहेंगे।

आइये जानते हैं भगवान शिव की कुछ महत्वपूर्ण बातें:- आखिर कौन है भगवान शिव के माता पिता:- 

देवों के देव ‘महादेव’…शिव को महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे ‘भैरव’ कहा गया है| भोलेनाथ हिन्दू धर्म की त्रिमूर्ति में से एक हैं। त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश (शिव)। वेदों में शिव को रुद्र के नाम से सम्बोधित क्रिया गया तथा इनकी स्तुति में कई ऋचाएं लिखी गई। सामवेद और यजुर्वेद में शिव-स्तुतियां उपलब्ध हैं। उपनिषदों में भी विशेषकर श्वेताश्वतरोपनिषद में शिव-स्तुति है। वेदों और उपनिषदों के अतिरिक्त शिव की कथा अन्य कई ग्रन्थों में मिलती है। यथा शिवपुराण, स्कंदपुराण, लिंगपुराण आदि।

भगवान शिव व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। अधिक्तर चित्रों में शिव योगी के रूप में दिखाए गए हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग विराजमान हैं, हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है।


भगवान शिव का व्यक्तित्व इतना विराट है कि उसका पूरा चित्र प्रस्तुत कर पाना असंभव है। उनकी वेषभूषा भय और जिज्ञासा दोनों का ही सृजन करती है। भगवान भोलेनाथ का श्रृंगार भी सोचने को विवश करता है। कई प्रश्नों को जन्म देता है। शीर्ष पर घनी लंबी और उलझी हुई काली जटाएं है। जटाओं में गंगा का वास है, वहीं भल चंद्र सुशोभित है। कानों में कुंडल धारण किए हुए हैं। तन पर भस्म रमी हुई है। गले में नाग सुशोभित है। एक हाथ में डमरू और दूसरे हाथ में त्रिशूल है। भगवान शिव नंदी बैल की सवारी करते हैं। भगवान शिव श्मशान भस्म का लेप करते हैं। इसके पीछे भी गूढ़ रहस्य है। यह संसार और मन तन की नश्वरता का प्रतीक है। भगवान शिव अजन्मा और अविनाशी कहे जाते हैं। शिवपुराण में कथा है कि ब्रह्मा विष्णु भी इनके आदि और अंत का पता नही कर पाए थे। लेकिन इनके जन्म की भी एक रोचक कथा है, इस कथा का उल्लेख बहुत कम मिलता है इसलिए कम ही लोगों को इसकी जानकारी है।

शिव पुराण में भगवान शिव का जन्म – इस विषय में शिव पुराण की बातों पर अधिक विश्वास किया जाता है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है अर्थात (सेल्फ बॉर्न) माना गया है। शास्त्रों में इसको लेकर कहा गया कि ‘वह वहां था, जब कुछ भी और कोई भी नहीं था और वह सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी रहेगा।’ इसीलिए वह ‘आदि देव’ हैं। इन्हीं आदि देव से अखिल ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति बताई गयी है। जो सभी देवों में प्रथम हैं।

लिंग के रूप में पहली बार प्रकट हुए थे भगवान शिव- पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के जन्म के बाद दोनों में बहस हो गई कि कौन अधिक श्रेष्ठ हैं। अचानक, कहीं से एक चमकदार लिंग दिखाई दिया। उसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि जो भी इस लिंग (शिव लिंग) का आरंभ या अंत पता लगा लेगा, वह बड़ा होगा। भगवान विष्णु नीचे की ओर गए और ब्रह्मा जी ऊपर की ओर। दोनों कई वर्षों तक खोज करते रहे लेकिन उन्हें न तो उस लिंग का आरम्भ मिला और न ही अंत।

जब शिव ने बताया अपना असली स्वरूप– भगवान विष्णु को अहसास हुआ यह ज्योतिर्लिंग एक परमशक्ति हैं जो इस ब्रह्मांड का मूलभूत कारण है और यही भगवान शिव हैं। इसके साथ ही आकाशवाणी हुई यह शिवलिंग है और मेरा कोई आकार नहीं है। मैं निरंकार हूं।

🔱🕉️🚩 || Har Har Mahadev || 🚩🕉️🔱

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